Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Gotrakarmodayjanya Avastha.

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नाडी, वायुरोग अने वायुनो गोळो ए वगेरे पवनरूप शरीरनां अंग जाणवां. वळी
स्वर छे ते शब्द छे; ते जेम वीणानी तांतने हलावतां भाषारूप होवा योग्य पुद्गलस्कंधो छे
ते साक्षर वा अनक्षर शब्दरूप परिणमे छे; तेम ताळु, होठ इत्यादि अंगोने हलावता
भाषापर्याप्तिमां ग्रहेला जे पुद्गलस्कंधो छे ते साक्षर वा अनक्षर शब्दरूप परिणमे छे. वळी
शुभ
अशुभ गमनादिक थाय छे त्यां एम जाणवुं के जेम बे पुरुषोने एकदंडी बेडी होय त्यां
एक पुरुष गमनादिक करवा इच्छे तो गमनादि न थई शके, पण बीजो गमनादि करे तो ज
गमनादिक थई शके, पण बंनेमांथी एक बेसी रहे तो गमनादि थई शके नहि. तथा बंनेमांथी
एक बळवान होय तो ते बीजाने पण घसडी जाय. तेम आत्माने अने शरीरादिरूप पुद्गलने
एकक्षेत्रावगाहरूप बंधान छे. त्यां आत्मा हलन
चलनादि करवा इच्छे अने पुद्गल ए शक्तिवडे
रहित बनी हलनचलन न करे वा पुद्गलमां शक्ति होवा छतां पण आत्मानी इच्छा न होय
तो हलनचलनादि थई शके नहि तथा ए बंनेमां पुद्गल बळवान थई हालवाचालवा लागे
तो तेनी साथे इच्छा विना पण आत्मा हालवाचालवा लागे. ए प्रमाणे हलनचलनादि क्रिया
थाय छे. वळी तेने अपयश आदि बाह्य निमित्त बने छे, एम ए कार्य नीपजे छे. ए वडे
मोह अनुसार आत्मा सुखी
दुःखी पण थाय छे. एम नामकर्मना उदयथी स्वयमेव नाना
प्रकाररूप रचना थाय छे, अन्य कोई करवावाळो नथी. तीर्थंकरादि प्रकृति तो (आ काळे) अहीं
छे ज नहीं.
गोत्रकर्मोदयजन्य अवस्था
गोत्रकर्मथी नीचऊंच कुळोमां ऊपजवुं थाय छे, त्यां पोतानुं हीनअधिकपणुं प्राप्त थाय
छे. मोहना निमित्तथी आत्मा सुखीदुःखी पण थाय छे.
ए प्रमाणे अघाति कर्मोना निमित्तथी अवस्थाओ थाय छे. एम आ अनादि संसारमां
घातिअघाति कर्मोना उदय अनुसार आत्मानी अवस्थाओ थाय छे. हे भव्य! तारा अंतरंगमां
तुं विचार करीने जो के एम ज छे के नहि? विचार करतां तो तने एम ज प्रतिभासशे. जो
एम ज छे तो तुं एम मान के ‘‘मने अनादि संसाररोग छे तेना नाशनो मारे उपाय करवो
आवश्यक छे.’’ ए विचारथी तारुं कल्याण थशे.
ए प्रमाणे श्री मोक्षमार्गप्रकाशक शास्त्र विषे
संसारअवस्था निरूपक बीजो अधिकार समाप्त
४६ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक