भमराने कमळनी सुगंध सूंघवानी, पतंगने दीपकनो वर्ण देखवानी तथा हरणने राग सांभळवानी
एवी इच्छा होय छे के तत्काल मरण भासे तोपण ते मरणने न गणतां विषयोनुं ग्रहण करे
छे. तेथी मरण थवा करतां पण इन्द्रियोना विषयसेवननी पीडा अधिक जणाय छे. ए इन्द्रियोनी
पीडाथी सर्व जीवो पीडित बनी निर्विचार थई, जेम कोई दुःखी माणस पहाड उपरथी पडतु
मूके तेम, विषयोमां झंपापात करे छे. नाना प्रकारनां कष्टवडे धन उपजावे अने विषयने अर्थे
तेने गुमावे. विषयोनी प्राप्ति अर्थे ज्यां मरण थतुं जाणे त्यां पण जाय, नरकादिकना कारणरूप
जे हिंसादिक कार्य तेने पण करे वा क्रोधादिक कषायो उपजावे. बिचारो शुं करे? इन्द्रियोनी पीडा
न सहन थवाथी तेने अन्य कांई विचार आवतो नथी. ए पीडाथी ज पीडित थई इन्द्रादिक
देवो पण विषयोमां अति आसक्त बनी रह्या छे. जेम खाजना रोगथी पीडित थयेलो पुरुष
आसक्त बनी खजवाळवा लागे छे, पीडा न थती होय तो ते शा माटे खजवाळे? तेम
इन्द्रियरोगथी पीडित थयेला इन्द्रादिक देवो आसक्त बनी विषयसेवन करे छे. पीडा न होय
तो तेओ शा माटे विषयसेवन करे? ए प्रमाणे ज्ञानावरण
छे. हवे ए दुःख दूर थवानो उपाय आ जीव केवो करे छे ते कहीए छीए.
होवाथी तेनुं निमित्त मेळवे छे. पोताने सन्मुख थयेला विषयोने इंद्रियो ग्रहण करी शके छे
तेथी अनेक बाह्य उपायो वडे विषयोनो अने इंद्रियोनो संयोग मेळवे छे. नाना प्रकारनां
वस्त्रादिक, भोजनादिक, पुष्पादिक, मंदिर
तो तेनुं किंचित् स्पष्ट जाणपणुं रहे, पण पछी मन द्वारा स्मरणमात्र ज रहे अने काळ व्यतीत
थतां ए स्मरण पण मंद थतुं जाय छे तेथी ते विषयोने पोताने आधीन राखवानो उपाय
करे छे अने शीघ्र शीघ्र तेनुं ग्रहण कर्या करे छे. वळी इन्द्रियोवडे तो एक काळमां कोई एक
ज विषयनुं ग्रहण थाय छे, पण आ जीव घणा घणा विषयो ग्रहण करवा इच्छे छे तेथी
उतावळो बनी जलदी जलदी एक विषयने छोडी अन्यने ग्रहण करे छे, वळी तेने छोडी अन्यने
ग्रहण करे छे. ए प्रमाणे विषयने अर्थे वलखां मारे छे अने पोताने जे भासे तेवा उपाय
कर्या करे छे, पण ए उपाय जूठा छे, कारण के प्रथम तो ए बधानुं ए ज प्रमाणे थवुं पोताने