इन्द्रियोने प्रबळ करवाथी कांई विषयग्रहणनी शक्ति वधती नथी, ए तो ज्ञान
एवी शक्ति ओछी जोवामां आवे छे, तथा कोईनुं शरीर दुर्बळ होवा छतां तेनामां एवी शक्ति
अधिक जोवामां आवे छे. माटे भोजनादिक वडे इन्द्रियो पुष्ट करवाथी कांई सिद्धि थती नथी,
परंतु कषायादिक घटवाथी कर्मनो क्षयोपशम थतां ज्ञान
पोताना आधीन राखी जलदी जलदी ग्रहण करवा इच्छे छे पण ते पोताना आधीन रहेता
नथी, कारण के ए जुदां जुदां द्रव्य पोतपोताने आधीन परिणमे छे वा कर्मोदय आधीन
परिणमे छे. हवे एवा प्रकारना कर्मनो बंध यथायोग्य शुभभाव थतां ज थाय अने पछी
उदयमां आवे छे, एम प्रत्यक्ष जोईए छीए. जुओ, अनेक उपाय करवा छतां पण कर्मना
निमित्त विना सामग्री मळती नथी. छतां आ जीव अति व्याकुळ बनी सर्व विषयोने युगपत्
ग्रहण करवा माटे वलखां मारे छे, तथा एक विषयने छोडी अन्यनुं ग्रहण करवा माटे आ
जीव एवां वलखा मारे छे, पण परिणामे शुं सिद्धि थाय छे? जेम मणनी भूखवाळाने कण
मळ्यो पण तेथी तेनी भूख मटे? तेम सर्व ग्रहणनी जेने इच्छा छे तेने कोई एक विषयनुं
ग्रहण थतां इच्छा केम मटे? अने इच्छा मट्या विना सुख पण थाय नहि. माटे ए बधा
उपाय जूठा छे.
तेम दुःख मट्या पछी अन्य विषयोने शा माटे इच्छे? जो विषयनुं ग्रहण कर्या पछी इच्छा
शांत थाय
ग्रहण थयुं ते ज समये अन्य विषयग्रहणनी इच्छा थती जोवामां आवे छे, तेने सुख मानवुं
ए केवुं छे? जेम कोई महाक्षुधावान रंक पोताने कदाचित् एक अन्ननो कण तेनुं भक्षण करी
चेन माने तेम आ महातृष्णावान जीव पोताने कोई एक विषयनुं निमित्त मळतां तेनुं ग्रहण
करी सुख माने छे पण वास्तविकपणे ए सुख नथी.