Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Dukhanivruttino Sacho Upay.

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प्रश्नःजेम कण कण वडे पोतानी भूख मटे छे, तेम एक एक विषयनुं ग्रहण
करी पोतानी इच्छा पूर्ण करे तो शो दोष?
उत्तरःजो बधा कण भेळा थाय तो एम ज मानीए, परंतु बीजो कण मळतां
प्रथमना कणनुं निर्गमन थई जाय तो भूख केम मटे? ए ज प्रमाणे जाणवामां विषयोनुं
ग्रहण भेळुं थतुं जाय तो इच्छा पूर्ण थई जाय, परंतु ज्यारे बीजो विषय ग्रहण करे त्यारे
पूर्वे जे विषय ग्रहण कर्यो हतो तेनुं जाणपणुं रहेतुं नथी तो इच्छा केवी रीते पूर्ण थाय?
इच्छा पूर्ण थया विना आकुळता पण मटती नथी अने आकुळता मट्या विना सुख पण केम
कही शकाय?
वळी एक विषयनुं ग्रहण पण आ जीव मिथ्यादर्शनादिकना सद्भावपूर्वक करे छे अने
तेथी भावि अनेक दुःखना हेतुरूप कर्मो बांधे छे, तेथी ते वर्तमानमां पण सुख नथी तेम
भावि सुखनुं कारण पण नथी, माटे ए दुःख ज छे. ए ज श्री प्रवचनसारमां कह्युं छे
यथा
सपरं बाधासहियं विच्छिण्णं बंधकारणं विसमं
जं इंदिएहिं लद्धं तं सोक्खं दुक्खमेव तहा ।।७६।।
अर्थःइन्द्रियोथी प्राप्त थयेलुं सुख पराधीन, बाधा सहित, विनाशिक, बंधनुं
कारण तथा विषम छे; तेथी ए सुख खरेखर दुःख ज छे.
दुःखनिवृत्तिनो साचो उपाय
ए प्रमाणे आ संसारी जीवे सुख माटे करेला उपाय जूठा जाणवा. तो साचो उपाय
शो छे? ज्यारे इच्छा दूर थाय अने सर्व विषयोनुं एक साथे ग्रहण रह्या करे तो ए दुःख
मटे. हवे इच्छा तो मोह जतां ज मटे अने सर्वनुं एक साथे ग्रहण केवळज्ञान थतां ज
थाय, तेनो उपाय सम्यग्दर्शनादिक छे, ए ज साचो उपाय जाणवो. ए प्रमाणे मोहना
निमित्तथी ज्ञानावरण
दर्शनावरणनो क्षयोपशम पण दुःखदायक छे, तेनुं वर्णन कर्युं.
प्रश्नःज्ञानावरण-दर्शनावरणना उदयथी जे जाणवुं थतुं नथी तेने तो दुःखनुं
कारण तमे कहो, परंतु क्षयोपशमने शा माटे कहो छो?
उत्तरःजाणवुं न बने ए जो दुःखनुं कारण होय तो पुद्गलने पण दुःख ठरे.
पण दुःखनुं मूळ कारण तो इच्छा छे अने ते क्षयोपशमथी ज थाय छे माटे क्षयोपशमने
पण दुःखनुं कारण कह्युं. वास्तविक रीते क्षयोपशम पण दुःखनुं कारण नथी पण मोहथी
त्रीजो अधिकारः संसारदुःख अने मोक्षसुख निरूपण ][ ५१