Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Darshanamohana Udayathi Thatu Dukha Ane Tena Upayonu Juthapanu.

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विषयग्रहणनी जे इच्छा छे ते ज दुःखनुं कारण जाणवुं. तथा मोहनो उदय छे ते दुःखरूप
ज छे. ते केवी रीते ते अहीं कहीए छीए.
दर्शनमोहना उदयथी थतुं दुःख अने तेना
उपायोनुं जूLापणुं
दर्शनमोहना उदयथी मिथ्यादर्शन थाय छे. जे वडे जेवुं तेने श्रद्धान छे तेवुं
पदार्थस्वरूप नथी. तथा जेवुं पदार्थस्वरूप छे तेवुं ए मानतो नथी, तेथी तेने व्याकुळता ज
रह्या करे छे. जेम कोई बहावराने कोईए वस्त्र पहेराव्युं, ते बहावरो ते वस्त्रने पोतानुं अंग
जाणी पोताने, शरीरने अने वस्त्रने एकरूप माने छे, पण ए वस्त्र तो पहेरावनारने आधीन
छे. ए पहेरावनार कोई वेळा ते वस्त्रने फाडे, कोई वेळा जोडे, कोई वेळा लई ले तथा कोई
वेळा नवीन पहेरावे, इत्यादि चरित्र करे त्यारे आ बहावरो ए वस्त्रनी पराधीन क्रिया थवा
छतां तेने पोताने आधीन मानी महा खेदखिन्न थाय छे. तेम आ जीवने कर्मोदयथी शरीरनो
संबंध थयो छे.
हवे आ जीव ए शरीरने पोतानुं अंग जाणी पोताने अने शरीरने एकरूप माने
छे, पण शरीर तो कर्मोदय आधीन कोई वेळा कृष थाय, कोई वेळा स्थूळ थाय, कोई वेळा
नष्ट थाय अने कोई वेळा नवीन उपजे, इत्यादि चरित्र थाय छे. ए प्रमाणे तेनी पराधीन
क्रिया थवा छतां तेने पोताने आधीन मानी महा खेदखिन्न थाय छे. वळी जेम कोई बहावरो
बेठो हतो त्यां कोई अन्य ठेकाणेथी माणस, घोडा अने धनादिक आवी ऊतर्या, ते सर्वने
आ बहावरो पोतानां जाणवा लाग्यो, पण ए बधां पोतपोताने आधीन होवाथी तेमां कोई
आवे, कोई जाय अने कोई अनेक अवस्थारूप परिणमे
एम ए सर्वनी पराधीन क्रिया थवा
छतां आ बहावरो तेने पोताने आधीन जाणी महा खेदखिन्न थाय छे. ए प्रमाणे आ जीव
ज्यां पर्याय (शरीर) धारण करे छे त्यां कोई अन्य ठेकाणेथी पुत्र, घोडा अने धनादिक आवीने
स्वयं प्राप्त थाय छे तेने आ जीव पोताना जाणे छे, पण ए तो पोतपोताने आधीन कोई
आवे, कोई जाय तथा कोई अनेक अवस्थारूप परिणमे
एम तेनी पराधीन क्रिया होय छे,
तेने पोताने आधीन मानी आ जीव खेदखिन्न थाय छे.
प्रश्नःकोई वेळा शरीरनी वा पुत्रादिकनी क्रिया आ जीवने आधीन थती
जोवामां आवे छे. ए वेळा तो जीव सुखी थाय छे?
उत्तरःशरीरादिकनी, भवितव्यनी अने जीवनी इच्छानीए त्रणेनी विधि मळतां
कोई प्रकारे जेम ए इच्छे तेम कोई परिणमवाथी कोई काळमां तेना विचारानुसार सुख जेवो
आभास थाय, परंतु ए बधाय सर्व प्रकारे (किंचित् पण) ए इच्छे तेम तो परिणमतां नथी
५२ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक