ते कार्यनी सिद्धि थतां जीव सुखी थाय, पण प्रमाण तो कोई छे ज नहि, मात्र इच्छा ज
वधती जाय छे.
श्री आत्मानुशासनमां कह्युं छे के —
आशागर्तः प्रतिप्राणी यस्मिन् विश्वमणूपमम् ।
कस्य किं कियदायाति वृथा वो विषयैषिता ।।३६।।
अर्थः — आशारूपी खाडो दरेक प्राणीने होय छे. अनंतानंत जीव छे ते सर्वने आशा
होय छे, ते आशा रूपी कूवो केवो छे के ते एक खाडामां समस्त लोक अणुसमान छे. लोक
तो एक ज छे, तो हवे अहीं कहो के कोने केटलो हिस्सामां आवे? माटे ज तमारी जे
आ विषयनी इच्छा छे ते वृथा ज छे.
इच्छा पूर्ण तो थती ज नथी, तेथी कोई कार्य सिद्ध थतां पण दुःख दूर थतुं नथी
अथवा कोई कषाय मटतां ते ज वेळा अन्य कषाय थाय छे. जेम कोईने मारवावाळा घणा
होय. हवे, ज्यारे कोई एक तेने न मारे त्यारे कोई अन्य तेने मारवा लागी जाय; एम
जीवने दुःख आपवावाळा अनेक कषायो छे. ज्यारे क्रोध न होय त्यारे मानादिक थई जाय,
तथा ज्यारे मान न होय त्यारे क्रोधादिक थई जाय, ए प्रमाणे कषायनो सद्भाव रह्या ज
करे छे. कोई एक समय पण जीव कषाय रहित होतो नथी, तेथी कोई कषायनुं कोई कार्य
सिद्ध थतां पण दुःख केवी रीते दूर थाय? वळी तेनो अभिप्राय तो सर्व कषायोना सर्व
प्रयोजनने सिद्ध करवानो छे. एम थाय तो ज ते सुखी थाय, परंतु एम तो कदी पण बनी
शके नहि, माटे अभिप्रायमां तो ते सदाय दुःखी ज रह्या करे छे. एटले कषायोना प्रयोजनने
साधी दुःख दूर करी सुखी थवानी इच्छा राखे छे, पण ए उपाय जूठा छे.
तो साचो उपाय शो छे? सम्यग्दर्शन – ज्ञानवडे वास्तविक श्रद्धान – ज्ञान थाय
तो इष्ट – अनिष्टबुद्धि मटे, अने तेना ज बळथी चारित्रमोहनो अनुभाग ओछो थाय. एम
थतां कषायोनो अभाव थाय त्यारे ए कषायजन्य पीडा दूर थाय अने त्यारे प्रयोजन कांई
रहे नहि. निराकुल थवाथी ते महासुखी थाय. माटे सम्यग्दर्शनादिक ज ए दुःख मटाडवानो
साचो उपाय छे.
✾ अंतरायकर्मना उदयथी थतुं दुःख अने तेना उपायोनुं जूLापणुं ✾
वळी आ जीवने मोह वडे दान, लाभ, भोग, उपभोग अने वीर्य शक्तिनो उत्साह
ऊपजे छे, परंतु अंतरायना उदयथी ते बनी शकतुं नथी त्यारे परम व्याकुळता थाय छे तेथी
ए दुःखरूप ज छे. तेना उपायमां विघ्ननां बाह्य कारणो पोताने जे देखाय तेने ज दूर
५८ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक
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