करवानो उद्यम करे छे, पण ए उपाय जूठा छे. कारण के उपाय करवा छतां पण
अंतरायकर्मनो उदय होवाथी विघ्न थतां जोईए छीए अने अंतरायकर्मनो क्षयोपशम थतां,
विना उपाय पण विघ्न थतां नथी. माटे विघ्ननुं मूळ कारण अंतराय छे.
वळी जेम मनुष्यना हाथमां रहेली लाकडी कूतराने वागतां ते लाकडी प्रत्ये निरर्थक
द्वेष करे छे तेम अंतराय वडे निमित्तभूत करेलां एवां बाह्य चेतन – अचेतन द्रव्यो वडे विघ्न
थाय त्यां आ जीव ए बाह्य द्रव्योथी निरर्थक द्वेष करे छे. कारण के अन्य द्रव्य तेने विघ्न
करवा इच्छे छतां विघ्न थतुं नथी तथा अन्य द्रव्य विघ्न करवा न इच्छे छतां तेने विघ्न
थाय छे, तेथी जणाय छे के – विघ्न थवुं न थवुं अन्य द्रव्यने जराय वश नथी. तो जेना वश
नथी तेनाथी शा माटे लडवुं? माटे ए उपाय जूठा छे.
तो साचो उपाय शो छे? मिथ्यादर्शनादिकथी इच्छा वडे जे उत्साह ऊपजतो हतो
ते सम्यग्दर्शनादिक वडे ज दूर थाय तथा सम्यग्दर्शनादिक वडे ज अंतरायकर्मनो अनुभाग
घटतां इच्छा तो मटी जाय अने शक्ति वधी जाय जेथी ए दुःख दूर थई निराकुल सुख
ऊपजे. माटे सम्यग्दर्शनादिक ज दुःख मटाडवाना साचा उपाय छे.
✾ वेदनीयकर्मना उदयथी थतुं दुःख अने तेना उपायोनुं जूLापणुं ✾
वेदनीयकर्मना उदयथी दुःख – सुखनां कारणोनो संयोग थाय छे. तेमां कोई तो शरीरमां
ज एवी अवस्था थाय छे, कोई शरीरनी अवस्थाने निमित्तभूत बाह्य संयोग थाय छे तथा
कोई बाह्य वस्तुओनो ज संयोग थाय छे. त्यां अशाता वेदनीयकर्मना उदयथी शरीरमां भूख,
तरस, उच्छ्वास, पीडा अने रोगादिक थाय छे. शरीरनी अनिष्ट अवस्थाने निमित्तभूत बाह्य
अति टाढ, ताप, पवन अने बंधनादिकनो संयोग थाय छे तथा बाह्य शत्रु – कुपुत्रादिक वा
कुवर्णादि सहित पुद्गलस्कंधोनो संयोग थाय छे. हवे मोह वडे ए सर्वमां जीवने अनिष्टबुद्धि
थाय छे. ज्यारे एनो उदय थाय त्यारे मोहनो उदय पण एवो ज आवे के जेथी परिणामोमां
महाव्याकुळ थईने ते सर्वने दूर करवा इच्छे, अने ज्यांसुधी ए दूर न थाय त्यांसुधी ते
दुःखी थाय. हवे ए बधाना होवाथी तो सर्व दुःख ज माने छे.
वळी शातावेदनीयकर्मना उदयथी शरीरमां अरोगीपणुं, बळवानपणुं इत्यादिक थाय
छे. शरीरनी इष्ट अवस्थाने निमित्तभूत बाह्य खान – पानादिक वा रुचिकर पवनादिकनो संयोग
थाय छे. तथा बाह्य मित्र, सुपुत्र, स्त्री, नोकर – चाकर, हाथी, घोडा, धन, धान्य, मकान
अने वस्त्रादिकनो संयोग थाय छे. हवे मोह वडे ए सर्वमां जीवने इष्टबुद्धि थाय छे, ज्यारे
एनो उदय थाय त्यारे मोहनो उदय पण एवो ज आवे के जेथी परिणामोमां ते सुख माने,
ए सर्वनी रक्षा इच्छे तथा ज्यांसुधी ते रहे त्यांसुधी सुख माने छे. पण ए सुखनी
मान्यता एवी छे के जेम कोई घणां रोगो वडे घणो पीडित थई रह्यो हतो तेने कोई
त्रीजो अधिकारः संसारदुःख अने मोक्षसुख निरूपण ][ ५९