Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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उपचारवडे कोई एक रोगनी केटलोक काळ मात्र कंईक उपशांति थतां पूर्व अवस्थानी
अपेक्षाए पोताने सुखी माने, पण वास्तविकपणे तेने सुख नथी. तेम आ जीव घणां दुःखोवडे
घणो पीडित थई रह्यो हतो, तेने कोई प्रकारे कोई एक दुःखनी कंईक काळ पूरती
किंचित् उपशांति थतां पूर्व अवस्थानी अपेक्षाए पोताने सुखी कहे छे, परंतु ते वास्तविकपणे
सुखी नथी.
वळी अशाताना उदयथी थती अवस्थाओमां तो दुःख भासे तेथी तेने दूर करवानो
उपाय करे तथा शाताना उदयथी थती अवस्थाओमां सुख भासे तेथी तेने राखवानो उपाय
करे, पण ए बधा उपायो जूठा छे.
कारणप्रथम तो तेनो उपाय आ जीवने आधीन नथी, परंतु वेदनीयकर्मना उदयने
आधीन छे, कारण के अशाता मटाडवा माटे अने शातानी प्राप्ति अर्थे तो सर्व जीवो प्रयत्न
करी रह्या छे छतां कोईने थोडो प्रयत्न करतां वा प्रयत्न कर्या विना पण कार्य सिद्ध थई
जाय छे अने कोईने घणो प्रयत्न करवा छतां कार्यसिद्धि थती नथी. तेथी जणाय छे के एनो
उपाय आ जीवने आधीन नथी.
वळी कदाचित् ए उपायो करतां तेवो ज कोई उदय आवे तो अल्प काळ किंचित्
कोई प्रकारे अशातानुं कारण मटे वा शातानुं कारण प्राप्त थाय त्यां पण मोहना सद्भावथी
तेने भोगववानी इच्छा वडे ते व्याकुळ ज रहे छे. एक भोग्य वस्तु भोगववानी इच्छा थतां
ते वस्तु ज्यांसुधी न मळे त्यांसुधी तो तेनी इच्छा वडे व्याकुळ थाय छे तथा ए वस्तु मळतां
ते ज समये अन्य वस्तु भोगववानी इच्छा थई जाय छे, जेथी ते व्याकुळ रहे छे. जेम
कोईने स्वाद लेवानी इच्छा थई, हवे तेनो स्वाद जे समये लीधो ते ज समये अन्य वस्तुनो
स्वाद लेवानी वा स्पर्शनादि करवानी इच्छा उपजे छे.
अथवा एक ज वस्तुने प्रथम अन्य प्रकारे भोगववानी इच्छा थाय ते ज्यांसुधी न
मळे त्यांसुधी तो तेनी व्याकुळता रहे तथा ए भोग थयो ते ज समय तेने अन्य प्रकारे
भोगववानी इच्छा थाय. जेम प्रथम स्त्रीने देखवा ज इच्छतो हतो, पण जे समये तेने दीठी
ते ज समये तेनी साथे रमवानी इच्छा थई जाय, वळी ए प्रमाणे भोग भोगवतां पण
तेने अन्य उपाय करवानी इच्छा थाय तो तेने छोडी ए अन्य उपाय करवा लागी जाय.
त्यां पण तेने अनेक प्रकारनी व्याकुळता होय छे.
जुओएक धनप्राप्तिनो उपाय करवामां व्यापारादिक करतां तथा तेनी रक्षा करवामां
सावधानी करतां करतां केटली व्याकुळता थाय छे? वळी भूख, तरस, टाढ, ताप, मळ,
श्लेष्मादि अशातानो उदय आव्या ज करे छे. तेना निवारणथी आ जीव सुख माने पण ए
सुख शानुं? ए तो मात्र रोगनो प्रतिकार ज छे. ज्यांसुधी क्षुधादिक रहे त्यां सुधी तेने
६० ][ मोक्षमार्गप्रकाशक