Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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मटाडवानी इच्छाए करीने व्याकुळता थाय अने ए मटतां कोई अन्य इच्छा ऊपजे तेनी
व्याकुळता थाय. वळी पाछी क्षुधादि थतां तेनी व्याकुळता थई आवे.
ए प्रमाणे तेने उपाय करतां कदाचित् अशाता मटी शाता थाय तो त्यां पण आकुळता
ज रह्या करे छे अने तेथी दुःख ज रहे छे.
वळी ए शाता पण सदा रहेती नथी, कारण के तेना उपाय करतांकरतां ज कोई
अशातानो उदय एवो आवे के जेनो कोई उपाय ज बनी शके नहि, तथा तेनी घणी पीडा
थाय ए सही जाय नहि त्यारे तेनी व्याकुळता वडे विह्वल बनी महा दुःखी थाय.
हवे आ संसारमां शातानो उदय तो कोई पुण्यना उदयथी कोई जीवने कदाचित् ज
होय छे. घणा जीवोने तो घणो काळ अशातानो ज उदय रहे छे. माटे ए उपाय करे छे
ते बधा उपाय जूठा छे.
अथवा बाह्य सामग्रीथी सुखदुःख मानीए छीए ए ज भ्रम छे. सुखदुःख तो
शाताअशातानो उदय थतां मोहना निमित्तथी थाय छे. आपणे प्रत्यक्ष जोईए छीए के एक
लक्षाधिपति हजार रूपियानुं नुकशान थतां दुःखी थाय छे तथा सो रूपियानी मूडीवाळो हजार
रूपिया थतां सुख माने छे. हवे बाह्य सामग्री तो पेला लक्षाधिपति पासे आना करतां
नवाणुंगणी वधारे छे, पण ए लक्षाधिपतिने अधिक धननी इच्छा छे तो ते दुःखी ज छे
तथा सो रूपियानी मूडीवाळाने संतोष छे तो ते सुखी छे. वळी समान वस्तु मळवा छतां
पण त्यां कोई सुख माने छे तथा कोई दुःख माने छे. जेम कोईने जाडुं वस्त्र मळवुं दुःखकारी
थाय छे त्यारे कोईने सुखकारी थाय छे. शरीरमां भूख वगेरे पीडा वा बाह्य इष्टनो वियोग
अनिष्टनो संयोग थतां कोईने घणुं दुःख थाय छे, कोईने थोडुं दुःख थाय छे तथा कोईने
कंई पण दुःख थतुं नथी. माटे सामग्रीने आधीन सुखदुःख नथी पण शाताअशातानो उदय
थतां मोहपरिणामोना निमित्तथी ज सुखदुःख माने छे.
प्रश्नःबाह्य सामग्री माटे तो तमे कहो छोएम ज छे, परंतु शरीरमां पीडा
थतां जीव दुःखी ज थाय छे तथा पीडा न थतां सुखी थाय छे. हवे ए तो शरीरनी
अवस्थाने आधीन सुख
दुःख भासे छे?
उत्तरःसंसारी आत्मानुं ज्ञान इन्द्रियाधीन छे, अने इन्द्रियो शरीरनुं अंग छे.
हवे तेमां जे अवस्था होय तेने जाणवारूप ज्ञान परिणमतां तेनी साथे ज मोहभाव होय
तो शरीरनी अवस्था वडे सुख-दुःख विशेष जाणीए छीए. जुओ पुत्र
धनादिनी साथे अधिक
मोह होय तो पोताना शरीरनुं कष्ट सहन करे तेनुं तो थोडुं दुःख माने, पण ए पुत्र
धनादिकने दुःख थतां वा तेनो संयोग मटतां घणुं दुःख माने छे. अने मुनिजनो छे ते
त्रीजो अधिकारः संसारदुःख अने मोक्षसुख निरूपण ][ ६१