Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Aayukarmna Udayathi Thatu Dukha Ane Tena Upayonu Juthapanu.

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शरीरनी पीडा थतां पण कांई दुःख मानता नथी, माटे सुखदुःख मानवुं ए मोहना ज
आधीन छे. मोहनीय अने वेदनीयने निमित्तनैमित्तिक संबंध छे. तेथी शाताअशाताना
उदयथी सुखदुःख थवुं भासे छे. वळी मुख्यपणे केटलीक सामग्री शाताना उदयथी प्राप्त
थाय छे तथा केटलीक अशाताना उदयथी प्राप्त थाय छे. तेथी ए सामग्रीओ वडे सुखदुःख
भासे छे, परंतु निर्णय करतां मोहथी ज सुखदुःखनुं मानवुं थाय छे, पण अन्य
द्वारा सुखदुःख थवानो नियम नथी. केवळी भगवानने शाताअशातानो उदय पण छे तथा
सुखदुःखना कारणरूप सामग्रीनो पण संयोग छे, परंतु मोहना अभावथी तेमने किंचित्मात्र
पण सुखदुःख थतुं नथी, माटे सुखदुःख मोहजनित ज मानवुं. एटला माटे तुं सामग्रीने
दूर करवाना वा कायम राखवाना उपायो करी दुःख मटाडवा तथा सुखी थवा इच्छे छे, पण
ए बधा उपाय जूठा छे.
तो साचो उपाय शो छे? सम्यग्दर्शनादिकथी भ्रम दूर थाय तो सामग्रीथी सुखदुःख
न भासतां पोताना परिणामथी ज सुखदुःख भासे. वळी यथार्थ विचारना अभ्यास वडे
पोताना परिणाम जेम ए सामग्रीना निमित्तथी सुखीदुःखी न थाय तेम साधन करे. ए
सम्यग्दर्शनादिनी भावनाथी ज मोह मंद थई जाय त्यारे एवी दशा थई जाय के अनेक
कारण मळवा छतां पण पोताने तेमां सुख
दुःख थाय नहि. त्यारे एक शांतदशारूप निराकुळ
बनी साचा सुखने अनुभवे अने त्यारे सर्व दुःख मटी सुखी थाय छे. माटे ए ज सुखी
थवानो साचो उपाय छे.
आयुकर्मना उदयथी थतुं दुःख अने तेना उपायोनुं जूLापणुं
आयुकर्मना निमित्तथी पर्याय धारण करवो ते जीवितव्य छे तथा धारण करेलो पर्याय
छूटवो ते मरण छे. हवे आ जीव मिथ्यादर्शनादिकथी ए पर्यायने ज पोताना स्वरूपरूपे
अनुभवे छे तेथी ए जीवितव्य रहेतां पोतानुं अस्तित्व माने छे तथा मरण थतां पोतानो
अभाव थवा माने छे. आ ज कारणथी तने निरंतर मरणनो भय रहे छे ते भयथी सदा
आकुळता रहे छे. जेने मरणनां कारण जाणे तेनाथी घणो ज डरे छे, कदाचित् तेनो संयोग
बनी जाय तो महाविह्वळ थई जाय छे. ए प्रमाणे ते महादुःखी रह्या करे छे.
ए मरणथी बचवा माटे उपाय एम करे छे के मरणनां कारणोने दूर राखे छे वा
पोते तेनाथी दूर भागे छे, औषधादिकनुं साधन करे छे, गढकोट आदि बनावे छे; ए आदि
अनेक उपाय करे छे पण ए बधा उपायो जूठा छे. कारण केआयु पूर्ण थतां तो अनेक
उपायो करे तथा अनेक सहायी होय छतां पण मरण अवश्य थाय छे. एक समयमात्र पण
जीवतो नथी. तथा ज्यांसुधी आयु पूर्ण न थयुं होय त्यांसुधी अनेक कारणो मळवा छतां
पण मरण सर्वथा थतुं ज नथी. माटे ए उपायो करवा छतां मरण मटतुं नथी. वळी आयुनी
६२ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक