स्थिति अवश्य पूर्ण थाय छे अने तेथी मरण पण अवश्य थाय छे. माटे ए उपायो करवा
जूठा ज छे.
तो साचो उपाय शो छे? सम्यग्दर्शनादिकथी पर्यायमां अहंबुद्धि छूटे, पोते ज
अनादिनिधन चैतन्यद्रव्य छे तेमां अहंबुद्धि आवे अने पर्यायने स्वांग समान जाणे तो
मरणनो भय रहे नहि. अने सम्यग्दर्शनादिकथी ज ज्यारे सिद्धपद पामे त्यारे ज मरणनो
अभाव थाय माटे सम्यग्दर्शनादिक ज तेना साचा उपाय छे.
नामकर्मना उदयथी थतुं दुःख अने तेना उपायोनुं जूLापणुं
नामकर्मना उदयथी गति, जाति अने शरीरादिक नीपजे छे. तेमांथी पुण्यना उदयथी
जे प्राप्त थाय ते तो सुखनां कारण थाय छे, अने पापना उदयथी जे प्राप्त थाय ते दुःखनां
कारण थाय छे, पण त्यां सुख मानवुं ए भ्रम छे. वळी दुःखनां कारण मटाडवाना तथा
सुखना कारण मेळववाना ए जे उपाय करे छे ते बधा जूठा छे. साचा उपाय तो मात्र
सम्यग्दर्शनादिक छे ते तो वेदनीयकर्मनुं कथन करतां जेम निरूपण कर्या तेम अहीं पण जाणवा.
कारण के वेदनीयकर्म अने नामकर्ममां सुख – दुःखना कारणपणानी समानता होवाथी तेना
निरूपणनी पण समानता जाणवी.
गोत्रकर्मना उदयथी थतुं दुःख अने तेना उपायोनुं जूLापणुं
गोत्रकर्मना उदयथी आत्मा नीच – उच्च कुळमां ऊपजे छे. त्यां ऊंच कुळमां ऊपजतां
पोताने ऊंचो माने छे तथा नीच कुळमां ऊपजतां पोताने नीचो माने छे. वळी कुळ पलटवानो
उपाय तो तेने कांई भासतो नथी, तेथी जेवुं कुळ पाम्यो होय तेवा ज कुळमां स्वपणुं माने
छे; पण कुळ अपेक्षाए पोताने ऊंच – नीच मानवो भ्रम छे. उच्च कुळवाळो कोई निंद्य कार्य
करे तो ते नीच थई जाय तथा नीच कुळमां कोई प्रशंसनीय कार्य करे तो ते उच्च थई जाय.
लोभादिक वडे नीच कुळवाळानी उच्च कुळवाळो सेवा करवा लागी जाय छे.
वळी कुळ केटला काळ सुधी रहे छे? कारण पर्याय छूटतां कुळनो पण पलटो थई
जाय छे माटे ऊंचा – नीचा कुळ वडे पोताने ऊंचो – नीचो मानवो ए भ्रम छे. उच्च कुळवाळाने
नीचा थवाना भयनुं तथा नीच कुळवाळाने प्राप्त थयेला नीचपणानुं दुःख ज छे.
तो ए दुःख दूर थवानो साचो उपाय शो छे? सम्यग्दर्शनादिक वडे उच्च – नीच कुळमां
हर्ष – विषाद न माने अने ए बधा करतां पण जेनो फरी पलटो न थाय एवा सर्वथी श्रेष्ठ
सिद्धपदने प्राप्त करे छे त्यारे ज सर्व दुःख मटी जाय अने सुखी थाय. (माटे
सम्यग्दर्शनादिक ज दुःख मटवाना तथा सुखी थवाना साचा उपायो छे.)
त्रीजो अधिकारः संसारदुःख अने मोक्षसुख निरूपण ][ ६३