ए प्रमाणे कर्मना उदयनी अपेक्षाए मिथ्यादर्शनादिकना निमित्तथी संसारमां केवळ
दुःख ज होय छे तेनुं वर्णन कर्युं.
पर्यायनी अपेक्षाए –
हवे ए दुःखोनुं पर्याय अपेक्षाए वर्णन करीए छीए.
✾ एकेन्द्रिय पर्यायनां दुःख ✾
आ संसारमां जीवनो घणो काळ तो एकेन्द्रिय पर्यायमां ज जाय छे. तेथी अनादिथी
ज तेनुं नित्य निगोदमां रहेवुं थाय छे. त्यांथी नीकळवुं एवुं छे के – जेम भाडभूंजाए शेकवा
नाखेला चणामांथी अचानक कोई चणो ऊछळी बहार पडे तेम त्यांथी नीकळी जीव अन्य
पर्याय धारण करे तो त्रस पर्यायमां तो घणो ज थोडो काळ रहे, पण घणो काळ तो एकेन्द्रिय
पर्यायमां ज व्यतीत करे छे.
त्यां इतर निगोदमां तो घणो काळ रहे छे तथा केटलोक काळ पृथ्वी, अप, तेज,
वायु अने प्रत्येक वनस्पतिमां रहे छे. नित्यनिगोदमांथी नीकळी त्रस पर्यायमां रहेवानो उत्कृष्ट
काळ कंईक अधिक बे हजार सागर ज छे. एकेन्द्रिय पर्यायमां उत्कृष्ट रहेवानो काळ असंख्यात
पुद्गलपरावर्तन मात्र छे. ए पुद्गलपरावर्तन काळ एटलो बधो लांबो छे के – जेना अनंतमा
भागमां पण अनंता सागर होय छे. माटे आ संसारी जीवनो घणो काळ तो मुख्यपणे
एकेन्द्रिय पर्यायमां ज व्यतीत थाय छे.
एकेन्द्रिय जीवने ज्ञान – दर्शननी शक्ति किंचित्मात्र ज होय छे, कारण के एक स्पर्शन
इन्द्रियना निमित्तथी थयेलुं मतिज्ञान अने तेना निमित्तथी थयेलुं श्रुतज्ञान तथा स्पर्शन-
इन्द्रियजनित अचक्षुदर्शन वडे ते शीत – उष्णादिकने किंचित्मात्र जाणे – देखे छे. पण ज्ञानावरण;
दर्शनावरणना तीव्र उदयथी तेने वधारे ज्ञान – दर्शन होतुं नथी. अने विषयोनी इच्छा होय
छे तेथी ते महादुःखी छे. दर्शनमोहना उदयथी तेमने मिथ्यादर्शन ज होय छे. तेथी तेओ
पर्यायने ज पोतानुं स्वरूप माने छे, पण तेमने अन्य विचार करवानी शक्ति ज नथी.
चारित्रमोहना उदयथी तेओ तीव्र क्रोधादि कषायरूप परिणमे छे तेथी ज श्री
केवळीभगवाने तेमने कृष्ण, नील अने कापोत — ए त्रण अशुभ लेश्याओ कही छे. ए लेश्याओ
तीव्र कषाय थतां ज होय छे. हवे कषाय तो घणो पण शक्ति सर्व प्रकारे करीने घणी ज अल्प
होवाथी तेओ घणा ज दुःखी थई रह्या छे. कांई उपाय पण करी शकता नथी.
प्रश्नः — ज्ञान तो किंचित्मात्र ज रह्युं छे तो तेओ शुं कषाय करे?
उत्तरः — एवो तो कोई खास नियम नथी के जेटलुं ज्ञान होय तेटलो ज कषाय
६४ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक