ज्ञान थोडुं होवा छतां पण घणो कषाय थतो जोवामां आवे छे तेम ए एकेन्द्रिय जीवोने
ज्ञान थोडुं होवा छतां पण घणो कषाय थवो मान्यो छे.
नथी. जेम कोई शक्तिहीन पुरुषने कोई कारणथी तीव्र कषाय थाय पण ते कांई करी शकतो
नथी तेथी तेनो कषाय बाह्यमां प्रगट थतो नथी तेथी ते ज महादुःखी थाय छे, तेम एकेन्द्रिय
जीवो शक्तिहीन छे, तेमने कोई कारणथी कषाय थाय छे, पण तेओ कांई करी शकता नथी
तेथी तेमनो कषाय बहार प्रगट थतो नथी; मात्र पोते ज दुःखी थई रह्या छे.
घटतुं जाय छे. एकेन्द्रिय जीवोने कषाय घणो छे अने शक्ति घणी अल्प छे तेथी तेओ
महादुःखी छे. एमनां दुःख तो ए ज भोगवे, एने श्री केवली भगवान ज जाणे, जेम
सन्निपातनो रोगी ज्ञान घटी जवाथी तथा बाह्यशक्ति हीन होवाथी पोतानुं दुःख प्रगट करी
शकतो नथी, परंतु ते महादुःखी छे. तेम एकेन्द्रिय जीवो ज्ञान बहु ज अल्प अने बाह्यशक्ति
हीन होवाथी पोतानुं दुःख प्रगट पण करी शकता नथी, परंतु महादुःखी छे.
भेदे छे, मसळे छे, खाय छे, तोडे छे
महादुःखी थाय छे.
स्पर्शनइन्द्रिय तो तेमने छे; जे वडे ए अवस्थाओने जाणी मोहवशथी तेओ महाव्याकुळ थाय
छे, परंतु तेमनामां भागी जवानी, लडवानी के पोकार करवानी शक्ति न होवाथी अज्ञानी
लोक तेमनां दुःखोने जाणता नथी. वळी कदाचित् किंचित् शातावेदनीयनो उदय तेमने होय
छे, पण ते बळवान होतो नथी.