Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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थाय. ज्ञान तो जेटलो क्षयोपशम होय तेटलुं होय. जेम कोई आंधळा अथवा बहेरा पुरुषने
ज्ञान थोडुं होवा छतां पण घणो कषाय थतो जोवामां आवे छे तेम ए एकेन्द्रिय जीवोने
ज्ञान थोडुं होवा छतां पण घणो कषाय थवो मान्यो छे.
वळी बाह्य कषाय प्रगट तो त्यारे थाय ज्यारे कषाय अनुसार तेओ कंईक उपाय
करे, पण ते शक्तिहीन छे तेथी उपाय कांई करी शकता नथी तेथी तेमनो कषाय प्रगट थतो
नथी. जेम कोई शक्तिहीन पुरुषने कोई कारणथी तीव्र कषाय थाय पण ते कांई करी शकतो
नथी तेथी तेनो कषाय बाह्यमां प्रगट थतो नथी तेथी ते ज महादुःखी थाय छे, तेम एकेन्द्रिय
जीवो शक्तिहीन छे, तेमने कोई कारणथी कषाय थाय छे, पण तेओ कांई करी शकता नथी
तेथी तेमनो कषाय बहार प्रगट थतो नथी; मात्र पोते ज दुःखी थई रह्या छे.
वळी एम जाणवुं के ज्यां कषाय घणो होय अने शक्ति अल्प होय त्यां घणुं ज
दुःख थाय छे. जेम जेम कषाय घटतो जाय अने शक्ति वधती जाय तेम तेम दुःख पण
घटतुं जाय छे. एकेन्द्रिय जीवोने कषाय घणो छे अने शक्ति घणी अल्प छे तेथी तेओ
महादुःखी छे. एमनां दुःख तो ए ज भोगवे, एने श्री केवली भगवान ज जाणे, जेम
सन्निपातनो रोगी ज्ञान घटी जवाथी तथा बाह्यशक्ति हीन होवाथी पोतानुं दुःख प्रगट करी
शकतो नथी, परंतु ते महादुःखी छे. तेम एकेन्द्रिय जीवो ज्ञान बहु ज अल्प अने बाह्यशक्ति
हीन होवाथी पोतानुं दुःख प्रगट पण करी शकता नथी, परंतु महादुःखी छे.
अंतरायना तीव्र उदयथी घणी चाहना छतां पण इच्छानुसार थतुं नथी माटे पण
तेओ दुःखी ज थाय छे.
अघाती कर्मोमां मुख्यपणे तेमने पापप्रकृतिओनो उदय छे. अशातावेदनीयनो उदय
थतां तेना निमित्तथी तेओ महादुःखी होय छे. वनस्पति पवनथी तूटी जाय छे, शीत
उष्णताथी अने जळ न मळवाथी सुकाई जाय छे, अग्निथी बळी जाय छे, कोई छेदे छे,
भेदे छे, मसळे छे, खाय छे, तोडे छे
इत्यादि अवस्था थाय छे. ए ज प्रमाणे यथासंभव
पृथ्वीकाळ आदिमां पण अवस्था थाय छे. ए अवस्थाओ होवाथी ए एकेन्द्रिय जीवो
महादुःखी थाय छे.
जेम मनुष्यना शरीरमां पण एवी अवस्थाओ थतां दुःख थाय छे ते ज प्रमाणे तेमने
पण दुःख थाय छे. ए अवस्थाओनुं जाणपणुं एक स्पर्शनइन्द्रिय द्वारा थाय छे. हवे
स्पर्शनइन्द्रिय तो तेमने छे; जे वडे ए अवस्थाओने जाणी मोहवशथी तेओ महाव्याकुळ थाय
छे, परंतु तेमनामां भागी जवानी, लडवानी के पोकार करवानी शक्ति न होवाथी अज्ञानी
लोक तेमनां दुःखोने जाणता नथी. वळी कदाचित् किंचित् शातावेदनीयनो उदय तेमने होय
छे, पण ते बळवान होतो नथी.
त्रीजो अधिकारः संसारदुःख अने मोक्षसुख निरूपण ][ ६५