गोम्मटसारनी जेम तेना जेवा तेमना अन्य टीकाग्रंथो पण एवा ज गहन छे. आ उपरथी ए
ग्रंथोना भाषाटीकाकार पुरुष केटली तीक्ष्ण बुद्धिना धारक हता ते स्वयमेव तरी आवे छे. तेमणे
पोताना टूंका जीवनमां ए महान ग्रंथोनी टीका लखी छे एटलुं ज नहि परंतु एटला टूका जीवनमां
स्वमत-परमतना सेंकडो ग्रंथोना पठन-पाठन साथे तेमनुं मर्मस्पर्शी ऊंडुं मनन पण कर्युं छे. अने
ए वात तेमना रचेला आ ‘मोक्षमार्ग-प्रकाशक’ ग्रंथनुं मनन करवाथी अभ्यासीने स्वयं लक्षमां आवी
जाय तेम छे.
देशभाषामय ‘मोक्षमार्गप्रकाशक’ ग्रंथ एवो अद्भुत छे के जेनी रहस्यपूर्ण गंभीरता अने
संकलनाबद्ध विषयरचनाने जोई भलभला बुद्धिमानोनी बुद्धि पण आश्चर्यचकित थई जाय छे. आ
ग्रंथनुं निष्पक्ष-न्याय द्रष्टिथी गंभीरपणे अवगाहन करतां जणाय छे के
आगमोना मर्मज्ञ तथा असाधारण प्रतिभासंपन्न विद्वान छे. ग्रंथना विषयोनुं प्रतिदान सर्वने
हितकारक छे अने महान गंभीर आशयपूर्वक थयुं छे.
प्रयोजन बतावीने पछी ग्रंथनी प्रमाणिकतानुं दिग्दर्शन कराव्युं छे; त्यार पछी श्रवण-पठन करवायोग्य
शास्त्रना वक्ता तेम ज श्रोतानुं स्वरूपनुं सप्रमाण विवेचन करीने ‘मोक्षमार्गप्रकाशक’ ग्रंथनी सार्थकता
बतावी छे.
संबंध, ते कर्मोना ‘घाति-अघाति’ एवा भेद, योग अने कषायथी थनार यथायोग्य कर्मबंधनो निर्देश,
जड पुद्गल परमाणुओनां यथायोग्य कर्मप्रकृतिरूप परिणमननो उल्लेख करीने भावोथी पूर्वबद्ध
कर्मोनी अवस्थामां थनारा परिवर्तननो निर्देश करवामां आव्यो छे. साथेसाथ कर्मोनां फलदानमां
निमित्त-नैमित्तिकसंबंध अने भावकर्म-द्रव्यकर्मनुं स्वरूप पण बताव्युं छे.
थता दुःखने तथा मोही जीवना दुःखनिवृत्तिना उपायने निःसार बतावीने दुःखनिवृत्तिनो साचो
उपाय बताव्यो छे, दर्शनमोह तथा चारित्रमोहना उदयथी थता दुःखनो अने तेनी निवृत्तिनो उल्लेख
करवामां आव्यो छे. एकेन्द्रियादिक जीवोनां दुःखनुं वर्णन करीने नरकादि चारेय गतिओनां घोर
कष्ट अने तेमने दूर करवाना सामान्य-विशेष उपायोनुं पण विवेचन करवामां आव्युं छे.