Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Mokshasukh Ane Teni Praptino Upay Siddha Avasthama Duhkhana Abhavni Siddhi.

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नरकना जीवोने दुःखी तथा देवोने सुखी कहीए छीए. ए इच्छानी अपेक्षाए ज
कहीए छीए. कारण केनारकीओने कषायनी तीव्रता होवाथी इच्छा घणी छे तथा देवोने
कषायनी मंदता होवाथी इच्छा थोडी छे. वळी मनुष्य अने तिर्यंचो पण इच्छानी अपेक्षाए
ज सुखी
दुःखी जाणवां. तीव्र कषायथी जेने इच्छा घणी होय तेने दुःखी कहीए छीए तथा
मंदकषायथी जेने इच्छा थोडी होय तेने सुखी कहीए छीए, परंतु वास्तविकपणे
त्यां दुःख ज घणुं वा थोडुं होय छे, सुख नहि.
देवादिकोने पण सुखी मानीए छीए
ते भ्रम ज छे, कारण केतेमने चोथी इच्छानी मुख्यता छे तेथी तेओ व्याकुळ छे.
ए प्रमाणे इच्छा थाय छे ते मिथ्यात्व, अज्ञान अने असंयमथी थाय छे तथा
इच्छामात्र आकुळतामय छे अने आकुळता ए ज दुःख छे. ए प्रमाणे सर्व संसारी जीवो
अनेक प्रकारनां दुःखोथी पीडित ज थई रह्या छे.
मोक्षसुख अने तेनी प्राप्तिनो उपाय
हवे जे जीवोने दुःखोथी छूटवुं होय तेमणे इच्छा दूर करवानो उपाय करवो अने
इच्छा तो त्यारे ज दूर थाय ज्यारे मिथ्यात्व, अज्ञान तथा असंयमनो अभाव थई
सम्यग्दर्शन
ज्ञानचारित्रनी प्राप्ति थाय. माटे ज ए कार्यनो उद्यम करवो योग्य छे. ए
प्रमाणे साधन करतां जेटली जेटली इच्छा मटे तेटलुं तेटलुं ज दुःख दूर थतुं जाय अने
मोहना सर्वथा अभावथी ज्यारे इच्छानो सर्वथा अभाव थाय त्यारे सर्व दुःख मटी सत्य
सुख प्रगटे. वळी ज्यारे ज्ञानावरण
दर्शनावरणअंतरायनो अभाव थाय त्यारे इच्छाना
कारणरूप क्षायोपशमिक ज्ञानदर्शननो वा शक्तिहीनपणानो पण अभाव थाय छे, अनंत
ज्ञानदर्शनवीर्यनी प्राप्ति थाय छे, तथा केटलाक काळ पछी अघाति कर्मोनो पण अभाव
थतां इच्छानां बाह्य कारणोनो पण अभाव थाय छे. कारण केमोह गया पछी कोई काळमां
ए कारणो किंचित् इच्छा उपजाववा समर्थ नथी. मोहना अस्तित्वमां ज ए कारण हतां तेथी
तेने कारण कह्यां. तेनो पण अभाव थतां ते सिद्धपदने प्राप्त थाय छे.
त्यां दुःखनो वा दुःखनां कारणोनो सर्वथा अभाव होवाथी सदाकाळ अनुपम अखंडित
सर्वोत्कृष्ट आनंद सहित अनंतकाळ बिराजमान रहे छे. ते केवी रीते? ते अहीं कहीए
छीएः
सिद्ध अवस्थामां दुःखना अभावनी सिद्धि
ज्ञानावरणदर्शनावरणनो क्षयोपशम थतां वा उदय थतां मोहद्वारा एक एक विषयने
देखवाजाणवानी इच्छावडे महाव्याकुळ थतो हतो, परंतु हवे मोहना अभावथी इच्छानो पण
अभाव थयो जेथी दुःखनो पण अभाव थयो. वळी ज्ञानावरणदर्शनावरणनो क्षय थवाथी
त्रीजो अधिकारः संसारदुःख अने मोक्षसुख निरूपण ][ ७३