अधिकार चोथो
मिथ्यादर्शन – ज्ञान – चारित्रनुं विशेष निरुपण
– दोहरो –
भवनां सर्व दुःखोतणुं, कारण मिथ्याभाव;
तेनी सत्ता नाश करे, प्रगटे मोक्ष उपाय.
हवे अहीं संसारदुःखोना बीजभूत मिथ्यादर्शन – ज्ञान – चारित्र छे तेनुं विशेष स्वरूप
निरूपण करीए छीए. जेम वैद्य रोगनां कारणोने विशेषरूपथी कहे तथा कुपथ्य सेवननो निषेध
करे तो रोगी कुपथ्यसेवन न करे अने तेथी रोगमुक्त थाय; तेम अहीं संसारनां कारणनुं विशेष
निरूपण करीए छीए. ज्यारे संसारीजीव मिथ्यादर्शनादिकनुं सेवन न करे, त्यारे ज संसाररहित
थाय. तेथी ए मिथ्यादर्शनादिकनुं वर्णन करीए छीए.
✾ मिथ्यादर्शननुं स्वरुप ✾
आ जीव अनादि काळथी कर्मसंबंध सहित छे. तेने दर्शनमोहना उदयथी थयेलुं जे
अतत्त्वश्रद्धान तेनुं नाम मिथ्यादर्शन छे. कारण के तद्भाव ते तत्त्व अर्थात् श्रद्धान करवा योग्य
जे अर्थ तेनो जे भाव अर्थात् स्वरूप तेनुं नाम तत्त्व छे. अने तत्त्व नथी तेनुं नाम अतत्त्व
छे. तेथी अतत्त्व ते असत्य छे तेनुं ज नाम मिथ्या छे. वळी ‘‘आ आम ज छे’’ — एवा
प्रतीतिभावनुं नाम श्रद्धान छे.
अहीं श्रद्धाननुं ज नाम दर्शन छे. जोके दर्शन शब्दनो अर्थ सामान्य अवलोकन थाय
छे तोपण अहीं प्रकरणानुसार ए ज धातुनो अर्थ श्रद्धान समजवो, अने श्री सर्वार्थसिद्धि
सूत्रनी टीकामां पण एम ज कह्युं छे. कारण के – सामान्य अवलोकन कांई संसार – मोक्षनुं कारण
थाय नहि, पण श्रद्धान ज संसार – मोक्षनुं कारण छे. तेथी संसार – मोक्षना कारण संबंधी
विवेचनमां दर्शन शब्दनो अर्थ श्रद्धान ज ग्रहण करवो.
हवे मिथ्यारूप जे दर्शन अर्थात् श्रद्धान तेनुं नाम मिथ्यादर्शन छे. जेवुं वस्तुस्वरूप
नथी तेवुं मानवुं तथा जेवुं छे तेवुं न मानवुं एवो विपरीताभिनिवेश अर्थात् विपरीत अभिप्राय
ते सहित मिथ्यादर्शन होय छे.
प्रश्नः — केवळज्ञान विना सर्व पदार्थ यथार्थ भासता नथी अने यथार्थ भास्या
विना यथार्थ श्रद्धान पण न होय, तो मिथ्यादर्शननो त्याग केवी रीते बने?
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