Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Prayojanabhoot-aprayojanabhoot Padarth.

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उत्तरःपदार्थोने जाणवा, न जाणवा वा अन्यथा जाणवा ते ज्ञानावरणकर्मना
अनुसार होय छे अने तेनी प्रतीति थाय छे ते पण जाणवाथी ज थाय छे, जाण्या विना
प्रतीति क्यांथी थाय? ए तो साचुं, परंतु जेम कोई पुरुष जे पदार्थथी पोतानुं कांई प्रयोजन
नथी ते पदार्थने अन्यथा जाणे, यथार्थ जाणे वा जेवुं जाणे तेवुं ज माने छतां तेथी तेनो
कांई पण सुधार
बगाड थतो नथी अने एवी रीते जाणवा वा मानवाथी ते पुरुष कांई डाह्यो
के पागल गणाय नहि, परंतु जेनाथी प्रयोजन छे तेने जो अन्यथा जाणे वा तेम ज मानवा
लागे तो तेनो बगाड थाय अने तेथी ते पागल कहेवाय. तथा जो ए प्रयोजनभूत पदार्थोने
यथार्थ जाणे वा तेम ज माने तो तेनो सुधार थाय अने तेथी डाह्यो कहेवाय. ए ज प्रमाणे
जेनाथी प्रयोजन नथी तेवा पदार्थोने आ जीव अन्यथा जाणे, यथार्थ जाणे वा जेवुं जाणे तेवुं
ज श्रद्धान करे, तो तेथी तेनो कोई सुधार के बगाड नथी अथवा तेथी ते मिथ्याद्रष्टि
सम्यग्द्रष्टि
नाम पामे नहि. पण जेनाथी प्रयोजन छे तेने जो अन्यथा जाणे तथा तेवुं ज श्रद्धान करे
तो तेनो बगाड थाय अने एटला माटे तेने मिथ्याद्रष्टि कहीए छीए. तथा जो तेने यथार्थ
जाणे अने तेवुं ज श्रद्धान करे तो तेनो सुधार थाय माटे सम्यग्द्रष्टि कहीए छीए.
अहीं एटलुं समजवुं केअप्रयोजनभूत वा प्रयोजनभूत पदार्थोने न जाणवा वा
यथार्थअयथार्थ जाणवामां आवे छे तेमां तो मात्र ज्ञाननी ज हीनताअधिकता थाय छे
एटलो ज जीवनो बगाडसुधार छे अने तेनुं निमित्त तो ज्ञानावरणकर्म छे. परंतु प्रयोजनभूत
पदार्थोने अन्यथा वा यथार्थ श्रद्धान करवाथी जीवनो कांई बीजो पण बगाडसुधार थाय छे
तेथी तेनुं निमित्त दर्शनमोहकर्म छे.
प्रश्नःजेवुं जाणे तेवुं श्रद्धान करे माटे अमने तो ज्ञानावरणना अनुसार ज
श्रद्धान भासे छे, पण अहीं दर्शनमोहनुं विशेष निमित्त कह्युं ते केवी रीते भासे छे?
उत्तरःप्रयोजनभूत जीवादि तत्त्वोनुं श्रद्धान करवा योग्य ज्ञानावरणनो क्षयोपशम
तो सर्व संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवोने थयो छे. परंतु द्रव्यलिंगी मुनि अगियार अंग सुधी भणे छे
तथा ग्रैवेयकना देवो अवधिज्ञानादि युक्त छे तेमने ज्ञानावरणनो घणो क्षयोपशम होवा छतां
पण प्रयोजनभूत जीवादिक तत्त्वोनुं श्रद्धान होतुं नथी, तथा तिर्यंचादिकने ज्ञानावरणनो
क्षयोपशम थोडो होवा छतां पण प्रयोजनभूत जीवादिक तत्त्वोनुं श्रद्धान होय छे, माटे समजाय
छे के ज्ञानावरणना क्षयोपशम अनुसार ज श्रद्धान नथी, परंतु कोई जुदुं कर्म छे अने ते
दर्शनमोह छे. तेना उदयथी ज्यारे जीवने मिथ्यादर्शन थाय छे त्यारे ते प्रयोजनभूत जीवादि
तत्त्वोनुं अन्यथा श्रद्धान करे छे.
प्रयोजनभूतअप्रयोजनभूत पदार्थ
प्रश्नःए प्रयोजनभूत अने अप्रयोजनभूत तत्त्व कया कया छे?
चोथो अधिकारः मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्रनुं विशेष निरूपण ][ ७९