Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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उत्तरःआ जीवने प्रयोजन तो एक ए ज छे के ‘‘मने दुःख न थाय अने सुख
थाय,’’ अन्य कंई पण प्रयोजन कोई जीवने नथी. वळी दुःख न होवुं तथा सुख होवुं ए
बे एक ज छे, कारण के दुःखनो अभाव ए ज सुख छे. हवे ए प्रयोजननी सिद्धि जीवादिक
तत्त्वोनुं सत्य श्रद्धान करतां ज थाय छे. ते केवी रीते ते अहीं कहीए छीए.
प्रथम तो दुःख दूर करवा माटे स्व-परनुं ज्ञान अवश्य जोईए. कारण के स्व-परनुं
ज्ञान जो न होय तो पोताने ओळख्या विना पोतानुं दुःख ते केवी रीते दूर करे? अथवा
स्व-परने एकरूप जाणी पोतानुं दुःख दूर करवा अर्थे परनो उपचार करे तो तेथी पोतानुं
दुःख केवी रीते दूर थाय? अथवा पोते तथा पर भिन्न छे परंतु आ जीव परमां अहंकार
ममकार करे तो तेथी दुःख ज थाय. माटे स्व-परनुं ज्ञान थतां दुःख दूर थाय छे. हवे स्व
-परनुं ज्ञान जीव
अजीवनुं ज्ञान थतां ज थाय छे, कारण के पोते स्वयं जीव छे तथा
शरीरादिक अजीव छे.
जो एनां लक्षणादिवडे जीवअजीवनी ओळखाण थाय तो ज स्वपरनुं भिन्नपणुं
भासे, माटे जीवअजीवने जाणवा जोईए. अथवा जीवअजीवनुं ज्ञान थतां जे पदार्थोना
अन्यथा श्रद्धानथी दुःख थतुं हतुं तेनुं यथार्थ ज्ञान थवाथी दुःख दूर थाय छे, माटे जीव
अजीवने जाणवा आवश्यक छे.
वळी दुःखनुं कारण तो कर्मबंधन छे अने तेनुं कारण मिथ्यात्वादिक आस्रव छे. हवे
तेने न ओळखे, तेने दुःखना मूळ कारणरूप न जाणे तो तेनो अभाव शी रीते करे? तथा
तेनो अभाव न करे तो कर्मबंधन केम न थाय? अने तेथी दुःख ज थाय छे. अथवा
मिथ्यात्वादिक भाव पोते ज दुःखमय छे, तेने जेम छे तेम न जाणे तो तेनो अभाव पण
ते न करे तेथी दुःखी ज रहे, माटे आस्रवने जाणवो आवश्यक छे.
वळी समस्त दुःखोनुं कारण कर्मबंधन छे. हवे तेने जो न जाणे तो तेथी मुक्त थवानो
उपाय पण ते न करे. अने तेना निमित्तथी ते दुःखी ज थाय, माटे बंधने जाणवो आवश्यक
छे.
आस्रवनो अभाव करवो ते संवर छे. हवे तेनुं स्वरूप जो न जाणे तो ते संवरमां
प्रवर्ते नहि अने तेथी आस्रव ज रहे, जेथी वर्तमान वा भाविमां दुःख ज थाय छे, माटे
संवरने जाणवो आवश्यक छे.
वळी कथंचित् किंचित् कर्मबंधननो अभाव करवो ते निर्जरा छे. तेने न जाणे तो तेनी
प्रवृत्तिनो उद्यमी पण ते न थाय, त्यारे सर्वथा बंध ज रहे अने तेथी दुःख ज थाय छे.
माटे निर्जरातत्त्वने जाणवुं आवश्यक छे.
तथा सर्वथा सर्व कर्मबंधनो अभाव थवो तेनुं नाम मोक्ष छे. तेने जो न ओळखे तो
८० ][ मोक्षमार्गप्रकाशक