Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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चौथा अधिकार ][ ८७
जाननेकी शक्ति हो; वहाँ जिसको असातावेदनीयका उदय हो वह दुःखके कारणभूत जो हों
उन्हींका वेदन करता है, सुखके कारणभूत पदार्थोंका वेदन नहीं करता। यदि सुखके कारणभूत
पदार्थोंका वेदन करे तो सुखी हो जाये, असाताका उदय होनेसे हो नहीं सकता। इसलिये यहाँ
दुःखके कारणभूत और सुखके कारणभूत पदार्थोंके वेदनमें ज्ञानावरणका निमित्त नहीं है, असाता-
साताका उदय ही कारणभूत है। उसी प्रकार जीवमें प्रयोजनभूत जीवादिक तत्त्व तथा
अप्रयोजनभूत अन्यको यथार्थ जाननेकी शक्ति होती है। वहाँ जिसके मिथ्यात्वका उदय होता
है वह तो अप्रयोजनभूत हों उन्हींका वेदन करता है, जानता है; प्रयोजनभूतको नहीं जानता।
यदि प्रयोजनभूतको जाने तो सम्यग्दर्शन हो जाये, परन्तु वह मिथ्यात्वका उदय होने पर हो
नहीं सकता; इसलिये यहाँ प्रयोजनभूत और अप्रयोजनभूत पदार्थोंको जाननेमें ज्ञानावरणका निमित्त
नहीं है; मिथ्यात्वका उदय-अनुदय ही कारणभूत है।
यहाँ ऐसा जानना किजहाँ एकेन्द्रियादिकमें जीवादि तत्त्वोंको यथार्थ जाननेकी शक्ति
ही न हो, वहाँ तो ज्ञानावरणका उदय और मिथ्यात्वके उदयसे हुआ मिथ्यादर्शन इन दोनोंका
निमित्त है। तथा जहाँ संज्ञी मनुष्यादिकमें क्षयोपशमादि लब्धि होनेसे शक्ति हो और न जाने,
वहाँ मिथ्यात्वके उदयका ही निमित्त जानना।
इसलिये मिथ्याज्ञानका मुख्य कारण ज्ञानावरणको नहीं कहा, मोहके उदयसे हुआ भाव
वही कारण कहा है।
यहाँ फि र प्रश्न है किज्ञान होने पर श्रद्धान होता है, इसलिये पहले मिथ्याज्ञान
कहो बादमें मिथ्यादर्शन कहो?
समाधानःहै तो ऐसा ही; जाने बिना श्रद्धान कैसे हो? परन्तु मिथ्या और सम्यक्
ऐसी संज्ञा ज्ञानको मिथ्यादर्शन और सम्यग्दर्शनके निमित्तसे होती है। जैसे मिथ्यादृष्टि और
सम्यग्दृष्टि सुवर्णादि पदार्थोंको जानते तो समान हैं; (परन्तु) वही जानना मिथ्यादृष्टिके मिथ्याज्ञान
नाम पाता है और सम्यग्दृष्टिके सम्यग्ज्ञान नाम पाता है। इसी प्रकार सर्व मिथ्याज्ञान और
सम्यग्ज्ञानको मिथ्यादर्शन और सम्यग्दर्शन कारण जानना।
इसलिये जहाँ सामान्यतया ज्ञान-श्रद्धानका निरूपण हो वहाँ तो ज्ञान कारणभूत है,
उसे प्रथम कहना और श्रद्धान कार्यभूत है, उसे बादमें कहना। तथा जहाँ मिथ्यासम्यक्
ज्ञान-श्रद्धानका निरूपण हो वहाँ श्रद्धान कारणभूत है, उसे पहले कहना और ज्ञान कार्यभूत
है उसे बादमें कहना।
फि र प्रश्न है किज्ञानश्रद्धान तो युगपत् होते हैं, उनमें कारण-कार्यपना कैसे
कहते हो?