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१०६ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
तो वह सामग्री जहाँसे लाकर एकत्रित की वह ठिकाना बतला और एक ब्रह्माने ही इतनी
रचना बनायी सो पहले – बादमें बनायी होगी या अपने शरीरके हस्तादि बहुत किये होंगे?
वह कैसे है सो बतला। जो बतलायेगा उसीमें विचार करनेसे विरुद्ध भासित होगा।
तथा एक प्रकार यह है — जिस प्रकार राजा आज्ञा करे तदनुसार कार्य होता है,
उसी प्रकार ब्रह्माकी आज्ञासे सृष्टि उत्पन्न होती है, तो आज्ञा किनको दी? और जिन्हें आज्ञा
दी वे कहाँसे सामग्री लाकर कैसे रचना करते हैं सो बतला।
तथा एक प्रकार यह है — जिस प्रकार ऋद्धिधारी इच्छा करे तदनुसार कार्य स्वयमेव
बनता है; उसी प्रकार ब्रह्म इच्छा करे तदनुसार सृष्टि उत्पन्न होती है, तब ब्रह्मा तो इच्छाका
ही कर्त्ता हुआ, लोक तो स्वयमेव ही उत्पन्न हुआ। तथा इच्छा तो परमब्रह्मने की थी, ब्रह्माका
कर्त्तव्य क्या हुआ जिससे ब्रह्मको सृष्टिको उत्पन्न करनेवाला कहा?
तथा तू कहेगा — परब्रह्मने भी इच्छा की और ब्रह्माने भी इच्छा की तब लोक उत्पन्न
हुआ, तो मालूम होता है कि केवल परमब्रह्मकी इच्छा कार्यकारी नहीं है। वहाँ शक्तिहीनपना
आया।
तथा हम पूछते हैं — यदि लोक केवल बनानेसे बनता है तब बनानेवाला तो सुखके
अर्थ बनायेगा, तो इष्ट ही रचना करेगा। इस लोकमें तो इष्ट पदार्थ थोड़े देखे जाते हैं,
अनिष्ट बहुत देखे जाते हैं। जीवोंमें देवादिक बनाये सो तो रमण करनेके अर्थ व भक्ति
करानेके अर्थ इष्ट बनाये; और लट, कीड़ी, कुत्ता, सुअर, सिंहादिक बनाये सो किस अर्थ
बनाये? वे तो रमणीक नहीं हैं, भक्ति नहीं करते, सर्व प्रकार अनिष्ट ही हैं। तथा दरिद्री,
दुःखी नारकियोंको देखकर अपने जुगुप्सा, ग्लानि आदि दुःख उत्पन्न हों — ऐसे अनिष्ट किसलिये
बनाये?
वहाँ वह कहता है — जीव अपने पापसे लट, कीड़ी, दरिद्री, नारकी आदि पर्याय
भुगतते हैं। उससे पूछते हैं कि — बादमें तो पापहीके फलसे यह पर्यायें हुई कहो, परन्तु
पहले लोकरचना करते ही उनको बनाया तो किस अर्थ बनाया? तथा बादमें जीव पापरूप
परिणमित हुए सो कैसे परिणमित हुए? यदि आप ही परिणमित हुए कहोगे तो मालूम होता
है ब्रह्माने पहले तो उत्पन्न किये, फि र वे इसके आधीन नहीं रहे, इस कारण ब्रह्माको दुःख
ही हुआ।
तथा यदि कहोगे — ब्रह्माके परिणमित करनेसे परिणमित होते हैं तो उन्हें पापरूप
किसलिये परिणमित किया? जीव तो अपने उत्पन्न किये थे, उनका बुरा किस अर्थ किया?