Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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पाँचवाँ अधिकार ][ १०७
इसलिये ऐसा भी नहीं बनता।
तथा अजीवोंमें सुवर्ण, सुगन्धादि सहित वस्तुएँ बनाईं सो तो रमण करनेके अर्थ बनायीं;
कुवर्ण, दुर्गन्धादि सहित वस्तुएँ दुःखदायक बनाईं सो किस अर्थ बनाईं? इनके दर्शनादिसे
ब्रह्माको कुछ सुख तो नहीं उत्पन्न होता होगा। तथा तू कहेगा पापी जीवोंको दुःख देनेके
अर्थ बनाईं; तो अपने ही उत्पन्न किये जीव उनसे ऐसी दुष्टता किसलिये की, जो उनको
दुःखदायक सामग्री पहले ही बनाई? तथा धूल, पर्वतादि कुछ वस्तुएँ ऐसी भी हैं जो रमणीय
भी नहीं हैं और दुःखदायक भी नहीं हैं
उन्हें किस अर्थ बनाया? स्वयमेव तो जैसी-तैसी
ही होती हैं और बनानेवाला जो बनाये वह तो प्रयोजन सहित ही बनाता है; इसलिये ब्रह्माको
सृष्टिका कर्ता कैसे कहा जाता है?
तथा विष्णुको लोकका रक्षक कहते हैं। रक्षक हो वह तो दो ही कार्य करता है
एक तो दुःख उत्पत्तिके कारण नहीं होने देता और एक विनष्ट होनेके कारण नहीं होने देता।
सो लोकमें तो दुःखको ही उत्पत्तिके कारण जहाँ-तहाँ देखे जाते हैं और उनसे जीवोंको दुःख
ही देखा जाता है। क्षुधा-तृषादि लग रहे हैं, शीत-उष्णादिकसे दुःख होता है, जीव परस्पर
दुःख उत्पन्न करते हैं, शस्त्रादि दुःखके कारण बन रहे हैं, तथा विनष्ट होनेके अनेक कारण
बन रहे हैं। जीवोंकी रोगादिक व अग्नि, विष, शस्त्रादिक पर्यायके नाशके कारण देखे जाते
हैं, तथा अजीवोंके भी परस्पर विनष्ट होनेके कारण देखे जाते हैं। सो ऐसे दोनों प्रकारकी
ही रक्षा नहीं की तो विष्णुने रक्षक होकर क्या किया?
वह कहता हैविष्णु रक्षक ही है। देखो क्षुधा-तृषादिकके अर्थ अन्न-जलादिक बनाये
हैं; कीड़ीको कण और कुन्जरको मन पहुँचता है, संकटमें सहायता करता है। मृत्युके कारण
उपस्थित होने पर भी
टिटहरीकी भाँति उबारता हैइत्यादि प्रकारसे विष्णु रक्षा करता है।
उससे कहते हैंऐसा है तो जहाँ जीवोंको क्षुधा-तृषादिक पीड़ित करते हैं और अन्न-जलादिक
नहीं मिलते, संकट पड़ने पर सहाय नहीं होती, किंचित् कारण पाकर मरण हो जाता है,
वहाँ विष्णुकी शक्ति हीन हुई या उसे ज्ञान ही नहीं हुआ? लोकमें बहुत तो ऐसे ही दुःखी
होते हैं, मरण पाते हैं; विष्णुने रक्षा क्यों नहीं की?
तब वह कहता हैयह जीवोंके अपने कर्त्तव्यका फल है। तब उससे कहते हैं
एक प्रकारका पक्षी जो एक समुद्रके किनारे रहता था। समुद्र उसके अण्डे बहा ले जाता था। उसने
दुःखी होकर गरुड़ पक्षी द्वारा विष्णुसे प्रार्थना की तो उन्होंने समुद्रसे अण्डे दिलवा दिये। ऐसी पुराणोंमें
कथा है।