ब्रह्माको कुछ सुख तो नहीं उत्पन्न होता होगा। तथा तू कहेगा पापी जीवोंको दुःख देनेके
अर्थ बनाईं; तो अपने ही उत्पन्न किये जीव उनसे ऐसी दुष्टता किसलिये की, जो उनको
दुःखदायक सामग्री पहले ही बनाई? तथा धूल, पर्वतादि कुछ वस्तुएँ ऐसी भी हैं जो रमणीय
भी नहीं हैं और दुःखदायक भी नहीं हैं
सृष्टिका कर्ता कैसे कहा जाता है?
सो लोकमें तो दुःखको ही उत्पत्तिके कारण जहाँ-तहाँ देखे जाते हैं और उनसे जीवोंको दुःख
ही देखा जाता है। क्षुधा-तृषादि लग रहे हैं, शीत-उष्णादिकसे दुःख होता है, जीव परस्पर
दुःख उत्पन्न करते हैं, शस्त्रादि दुःखके कारण बन रहे हैं, तथा विनष्ट होनेके अनेक कारण
बन रहे हैं। जीवोंकी रोगादिक व अग्नि, विष, शस्त्रादिक पर्यायके नाशके कारण देखे जाते
हैं, तथा अजीवोंके भी परस्पर विनष्ट होनेके कारण देखे जाते हैं। सो ऐसे दोनों प्रकारकी
ही रक्षा नहीं की तो विष्णुने रक्षक होकर क्या किया?
उपस्थित होने पर भी
वहाँ विष्णुकी शक्ति हीन हुई या उसे ज्ञान ही नहीं हुआ? लोकमें बहुत तो ऐसे ही दुःखी
होते हैं, मरण पाते हैं; विष्णुने रक्षा क्यों नहीं की?
दुःखी होकर गरुड़ पक्षी द्वारा विष्णुसे प्रार्थना की तो उन्होंने समुद्रसे अण्डे दिलवा दिये। ऐसी पुराणोंमें
कथा है।