Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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है; इसलिये जिस-तिस प्रकार आगम-अभ्यास करना योग्य है। पुनश्च, इस ग्रंथका वाँचना,
सुनना, विचारना बहुत सुगम है
कोई व्याकरणादिकका भी साधन नहीं चाहिये; इसलिये
अवश्य इसके अभ्यासमें प्रवर्तो। तुम्हारा कल्याण होगा।’’
अमृत-जयन्ति-महोत्सव
वि. सं. २०४४ श्रावण (गुजराती) वद-२
(बहिनश्री चम्पाबेनकी-७५वीं जन्म-जयन्ती)
दि. २९-८-८८
साहित्यप्रकाशनसमिति
श्री दि जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट,
सोनगढ़३६४ २५०
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