Moksha-Marg Prakashak (Hindi). Vishay Suchi.

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पहला अधिकार [पीठबंध प्ररूपण]
मंगलाचरण -----------------------------------------१
अरहंतोंका स्वरूप---------------------------------२
सिद्धोंका स्वरूप -----------------------------------२
आचार्य-उपाध्याय-साधुका सामान्य स्वरूप -----३
आचार्यका स्वरूप ---------------------------------३
उपाध्यायका स्वरूप -------------------------------४
साधुका स्वरूप ------------------------------------४
पूज्यत्वका कारण ---------------------------------४
अरहंतादिकसे प्रयोजनसिद्धि ---------------------६
मंगलाचरण करनेका कारण ---------------------८
ग्रन्थकी प्रामाणिकता और आगम-परम्परा -----९
अपनी बात--------------------------------------११
असत्यपद रचना प्रतिषेध ----------------------११
वांचने-सुनने योग्य शास्त्र ----------------------१४
वक्ताका स्वरूप----------------------------------१४
श्रोताका स्वरूप --------------------------------- १७
मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रन्थकी सार्थकता-----------१८
दूसरा अधिकार [संसार अवस्थाका स्वरूप]
कर्मबन्धका निदान -----------------------२२-३२
कर्मोंके अनादिपनेकी सिद्धि -------------------२२
जीव और कर्मोंकी भिन्नता -------------------२३
अमूर्तिक आत्मासे मूर्तिक कर्मोंका बंधान
किस प्रकार होता है? ---------------------२४
घाति-अघाति कर्म और उनका कार्य -------२४
निर्बल जड़कर्मों द्वारा स्वभावका
घात तथा बाह्य सामग्री मिलना ----२५
नवीन बन्ध विचार
योग और उससे होनेवाले प्रकृतिबन्ध,
प्रदेशबन्ध --------------------------------------२६
कषायसे स्थिति और अनुभागबन्ध ---------- २७
ज्ञानहीन जड़-पुद्गल परमाणुओंका यथायोग्य
प्रकृतिरूप परिणमन---------------------------२८
सत्तारूप कर्मोंकी अवस्था----------------------२९
कर्मोंकी उदयरूप अवस्था ---------------------२९
द्रव्यकर्म व भावकर्मका स्वरूप और प्रवृत्ति३०
नोकर्मका स्वरूप और प्रवृत्ति ----------------३१
नित्यनिगोद और इतरनिगोद ------------------३१
कर्मबन्धनरूप रोगके निमित्तसे
होनेवाली जीवकी अवस्था -------------३२-४४
ज्ञानावरण दर्शनावरणकर्मोदयजन्य अवस्था --३२
मतिज्ञानकी पराधीन प्रवृत्ति--------------------३३
श्रुतज्ञानकी पराधीन प्रवृत्ति --------------------३४
अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, केवलज्ञानकी
प्रवृत्ति ------------------------------------------३५
चक्षु-अचक्षु-अवधि-केवलदर्शनकी
प्रवृत्ति ------------------------------------------३५
मोहनीयकर्मोदयजन्य अवस्था ------------------ ३७
दर्शनमोहरूप जीवकी अवस्था-----------------३८
चारित्रमोहरूप जीवकी अवस्था ---------------३८
अंतरायकर्मोदयजन्य अवस्था-------------------४१
वेदनीयकर्मोदयजन्य अवस्था -------------------४१
आयुकर्मोदयजन्य अवस्था ----------------------४२
नामकर्मोदयजन्य अवस्था -----------------------४३
गोत्रकर्मोदयजन्य अवस्था ----------------------४४
[ १२ ]
विषय-सूची