Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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११२ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
अवतार मीमांसा
तथा चौबीस अवतार हुए कहते हैं; वहाँ कितने ही अवतारोंको पूर्णावतार कहते हैं,
कितनोंको अंशावतार कहते हैं। सो पूर्णावतार हुए तब ब्रह्म अन्यत्र व्यापक रहा या नहीं
रहा? यदि रहा तो इन अवतारोंको पूर्णावतार किसलिये कहते हो? यदि (व्यापक) नहीं रहा
तो एतावन्मात्र ही ब्रह्म रहा। तथा अंशावतार हुए वहाँ ब्रह्मका अंश तो सर्वत्र कहते हो,
इनमें क्या अधिकता हुई? तथा कार्य तो तुच्छ था और उसके लिये ब्रह्मने स्वयं अवतार
धारण किया कहते हैं सो मालूम होता है बिना अवतार धारण किये ब्रह्मकी शक्ति वह कार्य
करनेकी नहीं थी; क्योंकि जो कार्य अल्प उद्यमसे हो वहाँ बहुत उद्यम किसलिये करें?
तथा अवतारोंमें मच्छ, गच्छादि अवतार हुए सो किंचित कार्य करनेके अर्थ हीन तिर्यंच
पर्यायरूप हुआ सो कैसे सम्भव है? तथा प्रह्लादके अर्थ नरसिंह अवतार हुआ, सो हरिणांकुशको
ऐसा क्यों होने दिया और कितने ही काल तक अपने भक्तको किसलिये दुःख दिलाया?
तथा ऐसा रूप किसलिये धारण किया? तथा नाभिराजाके वृषभावतार हुआ बतलाते हैं, सो
नाभिको पुत्रपनेका सुख उपजानेको अवतार धारण किया। घोर तपश्चरण किसलिये किया?
उनको तो कुछ साघ्य था ही नहीं। कहेगा कि जगतके दिखलानेको किया; तब कोई अवतार
तो तपश्चरण दिखाये, कोई अवतार भोगादिक दिखाये, वहाँ जगत किसको भला जानेगा?
फि र (वह) कहता हैएक अरहंत नामका राजा हुआ उसने वृषभावतारका मत
अंगीकार करके जैनमत प्रगट किया, सो जैनमें कोई एक अरहंत नहीं हुआ। जो सर्वज्ञपद
पाकर पूजने योग्य हो उसका नाम अर्हत् है।
तथा राम-कृष्ण इन दोनों अवतारोंको मुख्य कहते हैं सो रामावतारने क्या किया?
सीताके अर्थ विलाप करके रावणसे लड़कर उसे मारकर राज्य किया। और कृष्णावतारमें
पहले ग्वाला होकर परस्त्री गोपियोंके अर्थ नाना विपरीत निंद्य
चेष्टाएँ करके, फि र जरासिंघु
आदिको मारकर राज्य किया। सो ऐसे कार्य करनेमें क्या सिद्धि हुई?
तथा राम-कृष्णादिकका एक स्वरूप कहते हैं, सो बीचमें इतने काल कहाँ रहे? यदि
ब्रह्ममें रहे तो अलग रहे या एक रहे? अलग रहे तो मालूम होता है वे ब्रह्मसे अलग रहते
सनत्कुमार-१, शूकरावतार-२, देवर्षि नारद-३, नर-नारायण-४, क पिल-५, दत्तात्रय-६, यज्ञपुरुष-७,
ऋषभावतार-८, पृथुअवतार-९, मत्स्य-१०, कच्छप-११, धन्वन्तरि-१२, मोहिनी-१३, नृसिंहावतार-१४,
वामन-१५, परशुराम-१६, व्यास-१७, हंस-१८, रामावतार-१९, कृष्णावतार-२०, हयग्रीव-२१, हरि-२२,
बुद्ध-२३, और कल्कि यह २४ अवतार माने जाते हैं।
भागवत स्कन्ध ५, अध्याय ६, ७, ११