रहा? यदि रहा तो इन अवतारोंको पूर्णावतार किसलिये कहते हो? यदि (व्यापक) नहीं रहा
तो एतावन्मात्र ही ब्रह्म रहा। तथा अंशावतार हुए वहाँ ब्रह्मका अंश तो सर्वत्र कहते हो,
इनमें क्या अधिकता हुई? तथा कार्य तो तुच्छ था और उसके लिये ब्रह्मने स्वयं अवतार
धारण किया कहते हैं सो मालूम होता है बिना अवतार धारण किये ब्रह्मकी शक्ति वह कार्य
करनेकी नहीं थी; क्योंकि जो कार्य अल्प उद्यमसे हो वहाँ बहुत उद्यम किसलिये करें?
ऐसा क्यों होने दिया और कितने ही काल तक अपने भक्तको किसलिये दुःख दिलाया?
तथा ऐसा रूप किसलिये धारण किया? तथा नाभिराजाके वृषभावतार हुआ बतलाते हैं, सो
नाभिको पुत्रपनेका सुख उपजानेको अवतार धारण किया। घोर तपश्चरण किसलिये किया?
उनको तो कुछ साघ्य था ही नहीं। कहेगा कि जगतके दिखलानेको किया; तब कोई अवतार
तो तपश्चरण दिखाये, कोई अवतार भोगादिक दिखाये, वहाँ जगत किसको भला जानेगा?
पाकर पूजने योग्य हो उसका नाम अर्हत् है।
पहले ग्वाला होकर परस्त्री गोपियोंके अर्थ नाना विपरीत निंद्य
ऋषभावतार-८, पृथुअवतार-९, मत्स्य-१०, कच्छप-११, धन्वन्तरि-१२, मोहिनी-१३, नृसिंहावतार-१४,
वामन-१५, परशुराम-१६, व्यास-१७, हंस-१८, रामावतार-१९, कृष्णावतार-२०, हयग्रीव-२१, हरि-२२,
बुद्ध-२३, और कल्कि यह २४ अवतार माने जाते हैं।