-
११४ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
है — धातुओंमें सुवर्ण, वृक्षोंमें कल्पवृक्ष, जुएमें झूठ इत्यादिमें मैं ही हूँ; सो पूर्वापर कुछ विचार
नहीं करते। किसी एक अङ्गसे कितने ही संसारी जिसे महंत मानते हैं, उसीको ब्रह्माका स्वरूप
कहते हैं; सो ब्रह्म सर्वव्यापी है तो ऐसा विशेष किसलिये किया? और सूर्यादिमें व सुवर्णादिमें
ही ब्रह्म है तो सूर्य उजाला करता है, सुवर्ण धन है इत्यादि गुणोंसे ब्रह्म माना; सो दीपादिक
भी सूर्यवत् उजाला करते हैं, चांदी – लोहादि भी सुवर्णवत् धन हैं — इत्यादि गुण अन्य पदार्थोंमें
भी हैं, उन्हें भी ब्रह्म मानो, बड़ा – छोटा मानो, परन्तु जाति तो एक हुई। सो झूठी महंतता
ठहरानेके अर्थ अनेक प्रकारकी युक्ति बनाते हैं।
तथा अनेक ज्वालामालिनी आदि देवियोंको मायाका स्वरूप कहकर हिंसादिक पाप उत्पन्न
करके उन्हें पूजना ठहराते हैं; सो माया तो निंद्य है, उसका पूजना कैसे सम्भव है? और
हिंसादिक करना कैसे भला होगा? तथा गाय, सर्प आदि पशु अभक्ष्य भक्षणादिसहित उन्हें
पूज्य कहते हैं; अग्नि, पवन, जलादिकको देव ठहराकर पूज्य कहते हैं; वृक्षादिकको युक्ति
बनाकर पूज्य कहते हैं।
बहुत क्या कहें? पुरुषलिंगी नाम सहित जो हों उनमें ब्रह्मकी कल्पना करते हैं और
स्त्रीलिंगी नाम सहित हों उनमें मायाकी कल्पना करके अनेक वस्तुओंका पूजन ठहराते हैं।
इनके पूजनेसे क्या होगा सो कुछ विचार नहीं है। झूठे लौकिक प्रयोजनके कारण ठहराकर
जगतको भ्रमाते हैं।
तथा वे कहते हैं — विधाता शरीरको गढ़ता है और यम मारता है, मरते समय यमके
दूत लेने आते हैं, मरनेके पश्चात् मार्गमें बहुत काल लगता है, तथा वहाँ पुण्य-पापका लेखा
करते हैं और वहाँ दण्डादिक देते हैं; सो यह कल्पित झूठी युक्ति है। जीव तो प्रतिसमय
अनन्त उपजते-मरते हैं, उनका युगपत् ऐसा होना कैसे सम्भव है? और इस प्रकार माननेका
कोई कारण भी भासित नहीं होता।
तथा वे मरनेके पश्चात् श्राद्धादिकसे भला होना कहते हैं, सो जीवित दशा तो किसीके
पुण्य-पाप द्वारा कोई सुखी-दुखी होता दिखाई नहीं देता, मरनेके बादमें कैसे होगा? यह युक्ति
मनुष्योंको भ्रमित करके अपना लोभ साधनेके अर्थ बनायी है।
कीड़ी, पतंगा, सिंहादिक जीव भी तो उपजते-मरते हैं उनको तो प्रलयके जीव ठहराते
हैं; परन्तु जिस प्रकार मनुष्यादिकके जन्म-मरण होते देखे जाते हैं, उसी प्रकार उनके होते
देखे जाते हैं। झूठी कल्पना करनेसे क्या सिद्धि है?
तथा वे शास्त्रोंमें कथादिकका निरूपण करते हैं वहाँ विचार करने पर विरुद्ध भासित
होता है।