Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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११६ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
मैं हूँ’’ ऐसा कहना झूठा हुआ। और यदि भक्ति करनेवाला जड़ है तो जड़के बुद्धिका
होना असम्भव है, ऐसी बुद्धि कैसे हुई? इसलिये ‘‘मैं दास हूँ’’ ऐसा कहना तो तभी बनता
है जब अलग-अलग पदार्थ हों। और ‘‘तेरा मैं अंश हूँ’’ ऐसा कहना बनता ही नहीं।
क्योंकि ‘तू’ और ‘मैं’ ऐसा तो भिन्न हो तभी बनता है, परन्तु अंश-अंशी भिन्न कैसे होंगे?
अंशी तो कोई भिन्न वस्तु है नहीं, अंशोंका समुदाय वही अंशी है। और ‘‘तू है सो मैं
हूँ’’
ऐसा वचन ही विरुद्ध है। एक पदार्थमें अपनत्व भी माने और उसे पर भी माने
सो कैसे सम्भव है; इसलिये भ्रम छोड़कर निर्णय करना।
तथा कितने नाम ही जपते हैं; सो जिसका नाम जपते हैं उसका स्वरूप पहिचाने
बिना केवल नामका ही जपना कैसे कार्यकारी होगा? यदि तू कहेगा नामका ही अतिशय
है; तो जो नाम ईश्वरका है वही नाम किसी पापी पुरुषका रखा, वहाँ दोनोंके नाम- उच्चारणमें
फलकी समानता हो, सो कैसे बनेगा? इसलिये स्वरूपका निर्णय करके पश्चात् भक्ति करने
योग्य हो उसकी भक्ति करना।
इस प्रकार निर्गुणभक्तिका स्वरूप बतलाया।
तथा जहाँ काम-क्रोधादिसे उत्पन्न हुए कार्योंका वर्णन करके स्तुति आदि करें उसे
सगुणभक्ति कहते हैं।
वहाँ सगुणभक्तिमें लौकिक श्रृंगार वर्णन जैसा नायक-नायिकाका करते हैं वैसा ठाकुर-
ठकुरानीका वर्णन करते हैं। स्वकीया-परकीया स्त्री सम्बन्धी संयोग-वियोगरूप सर्वव्यवहार वहाँ
निरूपित करते हैं। तथा स्नान करती स्त्रियोंके वस्त्र चुराना, दधि लूटना, स्त्रियोंके पैर पड़ना,
स्त्रियोंके आगे नाचना इत्यादि जिन कार्योंको करते संसारी जीव भी लज्जित हों उन कार्योंका
करना ठहराते हैं; सो ऐसा कार्य अति कामपीड़ित होने पर ही बनता है।
तथा युद्धादिक किये कहते हैं सो यह क्रोधके कार्य हैं। अपनी महिमा दिखानेके
अर्थ उपाय किये कहते हैं सो यह मानके कार्य हैं। अनेक छल किये कहते हैं सो मायाके
कार्य हैं। विषयसामग्री प्राप्तिके अर्थ यत्न किये कहते हैं सो यह लोभके कार्य हैं।
कौतूहलादिक किये कहते हैं सो हास्यादिकके कार्य हैं। ऐसे यह कार्य क्रोधादिसे युक्त होने
पर ही बनते हैं।
इस प्रकार काम-क्रोधादिसे उत्पन्न कार्योंको प्रगट करके कहते हैं किहम स्तुति करते
हैं; सो काम-क्रोधादिकके कार्य ही स्तुति योग्य हुए तो निंद्य कौन ठहरेंगे? जिनकी लोकमें,
शास्त्रमें अत्यन्त निन्दा पायी जाती है, उन कार्योंका वर्णन करके स्तुति करना तो हस्तचुगल
जैसा कार्य हुआ।