Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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पाँचवाँ अधिकार ][ १२१
मोक्षमार्ग नहीं है। जीवोंको इष्ट-अनिष्ट बतलाकर उनके राग-द्वेष बढ़ाये और अपने मान-
लोभादिक उत्पन्न करे, इसमें क्या सिद्धि है?
तथा प्राणायामादिक साधन करे, पवनको चढ़ाकर समाधि लगाई कहे; सो यह तो
जिस प्रकार नट साधना द्वारा हस्तादिकसे क्रिया करता है, उसी प्रकार यहाँ भी साधना द्वारा
पवनसे क्रिया की। हस्तादिक और पवन यह तो शरीरके ही अंग हैं इनके साधनेसे आत्महित
कैसे सधेगा?
तथा तू कहेगावहाँ मनका विकल्प मिटता है, सुख उत्पन्न होता है, यमके
वशीभूतपना नहीं होता; सो यह मिथ्या है। जिस प्रकार निद्रामें चेतनाकी प्रवृत्ति मिटती है,
उसी प्रकार पवन साधनेसे यहाँ चेतनाकी प्रवृत्ति मिटती है। वहाँ मनको रोक रखा है, कुछ
वासना तो मिटी नहीं है, इसलिये मनका विकल्प मिटा नहीं कहते; और चेतना बिना सुख
कौन भोगता है? इसलिये सुख उत्पन्न हुआ नहीं कहते। तथा इस साधनावाले तो इस क्षेत्रमें
हुए हैं, उनमें कोई अमर दिखाई नहीं देता। अग्नि लगानेसे उसका भी मरण होता दिखाई
देता है; इसलिये यमके वशीभूत नहीं हैं
यह झूठी कल्पना है।
तथा जहाँ साधनामें किंचित् चेतना रहे और वहाँ साधनासे शब्द सुने उसे ‘‘अनहद
नाद’’ बतलाता है। सो जिस प्रकार वीणादिकके शब्द सुननेसे सुख मानना है, उसी प्रकार
उसके सुननेसे सुख मानना है। यहाँ तो विषयपोषण हुआ, परमार्थ तो कुछ नहीं है। तथा
पवनके निकलने
- प्रविष्ट होनेमें ‘‘सोहं’’ ऐसे शब्द की कल्पना करके उसे ‘‘अजपा जाप’’ कहते
हैं। सो जिस प्रकार तीतरके शब्दमें ‘‘तू ही’’ शब्द की कल्पना करते हैं, कहीं तीतर अर्थका
अवधारण कर ऐसा शब्द नहीं कहता। उसी प्रकार यहाँ ‘‘सोहं’’ शब्दकी कल्पना है, कुछ
पवन अर्थ अवधारण करके ऐसे शब्द नहीं कहते; तथा शब्दके जपने
सुननेसे ही तो कुछ
फलप्राप्ति नहीं है, अर्थका अवधारण करनेसे फलप्राप्ति होती है।
‘‘सोहं’’ शब्दका तो अर्थ यह है ‘‘सो मैं हूँ।’’ यहाँ ऐसी अपेक्षा चाहिये कि
‘सो’ कौन? तब उसका निर्णय करना चाहिये; क्योंकि तत् शब्दको और यत् शब्दको नित्य
सम्बन्ध है। इसलिये वस्तुका निर्णय करके उसमें अहंबुद्धि धारण करनेमें ‘‘सोहं’’ शब्द बनता
है। वहाँ भी आपको आपरूप अनुभव करे वहाँ तो ‘‘सोहं’’ शब्द सम्भव नहीं है, परको
अपनेरूप बतलानेमें ‘‘सोहं’’ शब्द सम्भव है। जैसे
पुरुष आपको आप जाने, वहाँ ‘‘सो
मैं हूँ’’ ऐसा किसलिये विचारेगा? कोई अन्य जीव जो अपनेको न पहिचानता हो और कोई
अपना लक्षण न जानता हो, तब उससे कहते हैं
‘‘जो ऐसा है सो मैं हूँ’’, उसी प्रकार
यहाँ जानना।