Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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१२२ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
तथा कोई ललाट, भ्रमर और नासिकाके अग्रको देखनेके साधन द्वारा त्रिकुटी आदिका
ध्यान हुआ कहकर परमार्थ मानता है। वहाँ नेत्रकी पुतली फि रनेसे मूर्तिक वस्तु देखी, उसमें
क्या सिद्धि है? तथा ऐसे साधनसे किंचित् अतीत-अनागतादिकका ज्ञान हो, व वचनसिद्धि
हो, व पृथ्वी-आकाशादिमें गमनादिककी शक्ति हो, व शरीरमें आरोग्यतादिक हो तो यह तो
सर्व लौकिक कार्य हैं; देवादिकको स्वयमेव ही ऐसी शक्ति पायी जाती है। इनसे कुछ अपना
भला तो होता नहीं है; भला तो विषयकषायकी वासना मिटने पर होता है; यह तो
विषयकषायका पोषण करनेके उपाय हैं; इसलिये यह सर्व साधन किंचित् भी हितकारी नहीं
हैं। इनमें कष्ट बहुत मरणादि पर्यन्त होता है और हित सधता नहीं है; इसलिये ज्ञानी वृथा
ऐसा खेद नहीं करते, कषायी जीव ही ऐसे साधनमें लगते हैं।
तथा किसीको बहुत तपश्चरणादिक द्वारा मोक्षका साधन कठिन बतलाते हैं, किसीको
सुगमतासे ही मोक्ष हुआ कहते हैं। उद्धवादिकको परम भक्त कहकर उन्हें तो तपका उपदेश
दिया कहते हैं और वेश्यादिकको बिना परिणाम (केवल) नामादिकसे ही तरना बतलाते हैं,
कोई ठिकाना ही नहीं है।
इसप्रकार मोक्षमार्गको अन्यथा प्ररूपित करते हैं।
अन्यमत कल्पित मोक्षमार्गकी मीमांसा
तथा मोक्षस्वरूपको भी अन्यथा प्ररूपित करते हैं। वहाँ मोक्ष अनेक प्रकारसे बतलाते हैं।
एक तो मोक्ष ऐसा कहते हैं कि
वैकुण्ठधाममें ठाकुरठकुरानी सहित नाना भोग-विलास
करते हैं, वहाँ पहुँच जाय और उनकी सेवा करता रहे सो मोक्ष है; सो यह तो विरुद्ध है।
प्रथम तो ठाकुर ही संसारीवत् विषयासक्त हो रहे हैं; सो जैसे राजादिक हैं वैसे ही ठाकुर हुए।
तथा दूसरोंसे सेवा करानी पड़ी तब ठाकुरके पराधीनपना हुआ। और यदि वह मोक्ष प्राप्त करके
वहाँ सेवा करता रहे तो जिस प्रकार राजाकी चाकरी करना उसी प्रकार यह भी चाकरी हुई,
वहाँ पराधीन होने पर सुख कैसे होगा? इसलिये यह भी नहीं बनता।
तथा एक मोक्ष ऐसा कहते हैंईश्वरके समान आप होता है; सो भी मिथ्या है।
यदि उसके समान और भी अलग होते हैं तो बहुत ईश्वर हुए। लोकका कर्ता-हर्ता कौन
ठहरेगा? सभी ठहरें तो भिन्न इच्छा होने पर परस्पर विरोध होगा। एक ही है तो समानता
नहीं हुई। न्यून है उसको नीचेपनसे उच्च होनेकी आकुलता रही; तब सुखी कैसे होगा?
जिस प्रकार छोटा राजा या बड़ा राजा संसारमें होता है; उसी प्रकार छोटा-बड़ा ईश्वर मुक्तिमें
भी हुआ सो नहीं बनता।
तथा एक मोक्ष ऐसा कहते हैं किवैकुण्ठमें दीपक जैसी एक ज्योति है, वहाँ ज्योतिमें