करते हैं। तथा जिस प्रकार वे कहीं मांस-मदिरा, शिकार आदिका निषेध करते हैं, कहीं उत्तम
पुरुषों द्वारा उनका अंगीकार करना बतलाते हैं; उसी प्रकार यह भी उनका निषेध व अंगीकार
करना बतलाते हैं। ऐसे अनेक प्रकारसे समानता पायी जाती है। यद्यपि नामादिक और हैं;
तथापि प्रयोजनभूत अर्थकी एकता पायी जाती है।
प्रत्यक्षादि प्रमाणसे विरुद्ध निरूपण करते हैं।
इस प्रकार इस क्षेत्र-कालमें जिन-जिन मतोंकी प्रचुर प्रवृत्ति है उनका मिथ्यापना प्रगट
तथा राजादिकोंका व विद्यावानोंका ऐसे धर्ममें विषयकषायरूप प्रयोजन सिद्ध होता है। तथा जीव
तो लोकनिंद्यपनाको भी लाँघकर, पाप भी जानकर, जिन कार्योंको करना चाहे उन कार्योंको करते
धर्म बतलायें तो ऐसे धर्ममें कौन नहीं लगेगा? इसलिये इन धर्मोंकी विशेष प्रवृत्ति है।
बिना झूठ नहीं चलता; परन्तु सर्वके हित प्रयोजनमें विषयकषायका ही पोषण किया है।
जिस प्रकार गीतामें उपदेश देकर युद्ध करनेका प्रयोजन प्रगट किया, वेदान्तमें शुद्ध निरूपण
करके स्वच्छन्द होनेका प्रयोजन दिखाया; उसी प्रकार अन्य जानना। तथा यह काल तो
निकृष्ट है, सो इसमें तो निकृष्ट धर्मकी ही प्रवृत्ति विशेष होती है।