Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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१८२ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
जो आप तो सम्यक्त्वसे भ्रष्ट हैं और सम्यक्त्वधारियोंको अपने पैरों पड़वाना चाहते हैं,
वे लूले-गूँगे होते हैं अर्थात् स्थावर होते हैं तथा उनके बोधकी प्राप्ति महादुर्लभ होती है।
जे वि पडंति च तेसिं जाणंता लज्जागारवभयेण
तेसिं पि णत्थि बोही पावं अणुमोयमाणाणं।।१३।। (दर्शनपाहुड़)
जो जानते हुए भी लज्जा, गारव और भयसे उनके पैरों पड़ते हैं उनके भी बोधि
अर्थात् सम्यक्त्व नहीं है। कैसे हैं वे जीव? पापकी अनुमोदना करते हैं। पापियोंका
सन्मानादिक करनेसे भी उस पापकी अनुमोदनाका फल लगता है।
तथा कहते हैंः
जस्स परिग्गहगहणं अप्पं बहुयं च हवइ लिंगस्स
सो गरहिउ जिणवयणे परिगहरहिओ णिरायारो।।१९।। (सूत्रपाहुड़)
जिस लिंगके थोड़ा व बहुत परिग्रहका अंगीकार हो वह जिनवचनमें निन्दा योग्य है।
परिग्रह रहित ही अनगार होता है।
तथा कहते हैंः
धम्मम्मि णिप्पवासो दोसावासो य इच्छुफु ल्लसमो
णिप्फलणिग्गुणयारो णडसवणो णग्गरूबेण।।७१।। (भावपाहुड़)
अर्थःजो धर्ममें निरुद्यमी है, दोषोंका घर है, इक्षुफू ल समान निष्फल है, गुणके
आचरणसे रहित है; वह नग्नरूपसे नट-श्रमण है, भांडवत् वेशधारी है। अब, नग्न होने
पर भांडका दृष्टांत सम्भव है; परिग्रह रखे तो यह दृष्टान्त भी नहीं बनता।
जे पावमोहियमई लिंगं घेत्तू ण जिणवरिंदाणं
पावं कुणंति पावा ते चत्ता मोक्खमग्गम्मि।।७८।। (मोक्षपाहुड़)
अर्थःपापसे मोहित हुई है बुद्धि जिनकी; ऐसे जो जीव जिनवरोंका लिंग धारण
करके पाप करते हैं, वे पापमूर्ति मोक्षमार्गमें भ्रष्ट जानना।
तथा ऐसा कहा हैः
जे पंचचेलसत्ता गंथग्गाही य जायणासीला
आधाकम्मम्मि रया ते चत्ता मोक्खमग्गम्मि।।७९।। (मोक्षपाहुड़)
अर्थःजो पंचप्रकार वस्त्रमें आसक्त हैं, परिग्रहको ग्रहण करानेवाले हैं, याचनासहित
हैं, अधःकर्म दोषोंमें रत हैं; उन्हें मोक्षमार्गमें भ्रष्ट जानना।