Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 184 of 350
PDF/HTML Page 212 of 378

 

background image
-
१९४ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
शास्त्रोंमें सर्व जीवोंका केवलज्ञानस्वभाव कहा है, वह शक्ति अपेक्षासे कहा है; क्योंकि
सर्व जीवोंमें केवलज्ञानादिरूप होनेकी शक्ति है, वर्तमान व्यक्त्तता तो व्यक्त होने पर ही कही
जाती है।
कोई ऐसा मानता है कि आत्माके प्रदेशोंमें तो केवलज्ञान ही है, ऊपर आवरण होनेसे
प्रगट नहीं होता, सो यह भ्रम है। यदि केवलज्ञान हो तो वज्रपटलादि आड़े होने पर भी
वस्तुको जानता है; कर्म आड़े आने पर वह कैसे अटकेगा? इसलिये कर्मके निमित्तसे
केवलज्ञानका अभाव ही है। यदि इसका सर्वदा सद्भाव रहता तो इसे पारिणामिकभाव कहते,
परन्तु यह तो क्षायिकभाव है। ‘सर्वभेद जिसमें गर्भित हैं ऐसा चैतन्यभाव, सो पारिणामिकभाव
है।’ इसकी अनेक अवस्थाएँ मतिज्ञानादिरूप व केवलज्ञानादिरूप हैं, सो यह पारिणामिकभाव
नहीं हैं। इसलिये केवलज्ञानका सर्वदा सद्भाव नहीं मानता।
तथा शास्त्रोंमें जो सूर्यका दृष्टान्त दिया है उसका इतना ही भाव लेना कि जैसे मेघपटल
होते हुए सूर्यका प्रकाश प्रगट नहीं होता, उसी प्रकार कर्मउदय होते हुए केवलज्ञान नहीं
होता। तथा ऐसे भाव नहीं लेना कि जैसे सूर्यमें प्रकाश रहता है वैसे आत्मामें केवलज्ञान
रहता है; क्योंकि दृष्टान्त सर्व प्रकारसे मिलता नहीं है। जैसे
पुद्गलमें वर्णगुण है, उसकी
हरितपीतादि अवस्थाएँ हैं, सो वर्तमानमें कोई अवस्था होने पर अन्य अवस्थाका अभाव
है; उसी प्रकार आत्मामें चैतन्यगुण है, उसकी मतिज्ञानादिरूप अवस्थाएँ हैं, सो वर्तमानमें कोई
अवस्था होने पर अन्य अवस्थाका अभाव ही है।
तथा कोई कहे कि आवरण नाम तो वस्तुको आच्छादित करनेका है; केवलज्ञानका
सद्भाव नहीं है तो केवलज्ञानावरण किसलिये कहते हो?
उत्तरःयहाँ शक्ति है, उसे व्यक्त न होने दे; इस अपेक्षा आवरण कहा है। जैसे
देशचारित्रका अभाव होने पर शक्ति घातनेकी अपेक्षा अप्रत्याख्यानावरण कषाय कहा, उसी
प्रकार जानना।
तथा ऐसा जानना कि वस्तुमें परनिमित्तसे जो भाव हो उसका नाम औपाधिकभाव
है और परनिमित्तके बिना जो भाव हो उसका नाम स्वभावभाव है। जैसेजलको अग्निका
निमित्त होने पर उष्णपना हुआ, वहाँ शीतलपनेका अभाव ही है; परन्तु अग्निका निमित्त मिटने
पर शीतलता ही हो जाती है; इसलिये सदाकाल जलका स्वभाव शीतल कहा जाता है, क्योंकि
ऐसी शक्ति सदा पायी जाती है और व्यक्त होने पर स्वभाव व्यक्त हुआ कहते हैं। कदाचित्
व्यक्तरूप होता है। उसी प्रकार आत्माको कर्मका निमित्त होने पर अन्यरूप हुआ, वहाँ