Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 203 of 350
PDF/HTML Page 231 of 378

 

background image
-
सातवाँ अधिकार ][ २१३
करनेका श्रद्धान व ज्ञान व आचरण मिट जाये तब सम्यग्दर्शनादि होते हैं। यदि परद्रव्यका
परद्रव्यरूप श्रद्धानादि करनेसे सम्यग्दर्शनादि न होते हों तो केवलीके भी उनका अभाव हो।
जहाँ परद्रव्यको बुरा जानना, निजद्रव्यको भला जानना हो; वहाँ तो राग-द्वेष सहज ही हुए।
जहाँ आपको आपरूप और परको पररूप यथार्थ जानता रहे, वैसे ही श्रद्धानादिरूप प्रवर्तन
करे; तभी सम्यग्दर्शनादि होते हैं
ऐसा जानना।
इसलिये बहुत क्या कहेंजिस प्रकारसे रागादि मिटानेका श्रद्धान हो वही श्रद्धान
सम्यग्दर्शन है, जिस प्रकारसे रागादि मिटानेका जानना हो वही जानना सम्यग्ज्ञान है, तथा
जिसप्रकारसे रागादि मिटें वही आचरण सम्यक्चारित्र है; ऐसा ही मोक्षमार्ग मानना योग्य है।
इस प्रकार निश्चयनयसे आभाससहित एकान्तपक्षके धारी जैनाभासोंके मिथ्यात्वका
निरूपण किया।
व्यवहारभासी मिथ्यादृष्टि
अब, व्यवहाराभासपक्षके धारक जैनाभासोंके मिथ्यात्वका निरूपण करते हैंः
जिनागममें जहाँ व्यवहारकी मुख्यतासे उपदेश है, उसे मानकर बाह्यसाधनादिकका ही
श्रद्धानादिक करते हैं, उनके सर्वधर्मके अंग अन्यथारूप होकर मिथ्याभावको प्राप्त होते हैं
सो विशेष कहते हैं।
यहाँ ऐसा जान लेना कि व्यवहारधर्मकी प्रवृत्तिसे पुण्यबन्ध होता है, इसलिये
पापप्रवृत्तिकी अपेक्षा तो इसका निषेध है नहीं; परन्तु यहाँ जो जीव व्यवहारप्रवृत्तिसे ही सन्तुष्ट
होकर सच्चे मोक्षमार्गमें उद्यमी नहीं होते हैं, उन्हें मोक्षमार्गमें सन्मुख करनेके लिये उस शुभरूप
मिथ्याप्रवृत्तिका भी निषेधरूप निरूपण करते हैं।
यह जो कथन करते हैं उसे सुनकर यदि शुभप्रवृत्ति छोड़ अशुभमें प्रवृत्ति करोगे तब
तो तुम्हारा बुरा होगा; और यदि यथार्थ श्रद्धान करके मोक्षमार्गमें प्रवर्तन करोगे तो तुम्हारा
भला होगा। जैसे
कोई रोगी निर्गुण औषधिका निषेध सुनकर औषधि साधनको छोड़कर
कुपथ्य करे तो वह मरेगा, उसमें वैद्यका कुछ दोष नहीं है; उसी प्रकार कोई संसारी पुण्यरूप
धर्मका निषेध सुनकर धर्मसाधन छोड़ विषय-कषायरूप प्रवर्तन करेगा तो वही नरकादिमें दुःख
पायेगा। उपदेशदाताका तो दोष है नहीं। उपदेश देनेवालेका अभिप्राय तो असत्यश्रद्धानादि
छुड़ाकर मोक्षमार्गमें लगानेका जानना।
सो ऐसे अभिप्रायसे यहाँ निरूपण करते हैं।