Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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सातवाँ अधिकार ][ २५९
फि र वह कहेगास्वयं परीक्षा न की और जिनवचनसे ही उपादेयको उपादेय जानें
तथा हेयको हेय जानें तो इसमें कैसे बुरा होगा?
समाधानःअर्थका भाव भासित हुए बिना वचनका अभिप्राय नहीं पहिचाना जाता।
यह तो मानलें कि मैं जिनवचनानुसार मानता हूँ, परन्तु भाव भासित हुए बिना अन्यथापना
हो जाये। लोकमें भी नोकरको किसी कार्यके लिये भेजते हैं; वहाँ यदि वह उस कार्यका
भाव जानता हो तो कार्यको सुधारेगा; यदि भाव भासित नहीं होगा तो कहीं चूक जायेगा।
इसलिये भाव भासित होनेके अर्थ हेय
उपादेय तत्त्वोंकी परीक्षा अवश्य करना चाहिये।
फि र वह कहता हैयदि परीक्षा अन्यथा हो जाये तो क्या क्या करें?
समाधानःजिनवचन और अपनी परीक्षामें समानता हो, तब तो जाने कि सत्य परीक्षा
हुई है। जब तक ऐसा न हो तब तक जैसे कोई हिसाब करता है और उसकी विधि न
मिले तब तक अपनी चूकको ढूँढता है; उसी प्रकार यह अपनी परीक्षामें विचार किया करे।
तथा जो ज्ञेयतत्त्व हैं उनकी परीक्षा हो सके तो परीक्षा करे; नहीं तो यह अनुमान
करे कि जो हेयउपादेय तत्त्व ही अन्यथा नहीं कहे, तो ज्ञेयतत्त्वोंको अन्यथा किसलिये
कहेंगे? जैसेकोई प्रयोजनरूप कार्योंमें भी झूठ नहीं बोलता, वह अप्रयोजन झूठ क्यों
बोलेगा? इसलिये ज्ञेयतत्त्वोंका स्वरूप परीक्षा द्वारा भी अथवा आज्ञासे जाने। यदि उनका
यथार्थ भाव भासित न हो तो भी दोष नहीं है।
इसीलिये जैनशास्त्रोंमें जहाँ तत्त्वादिकका निरूपण किया; वहाँ तो हेतु, युक्ति आदि
द्वारा जिस प्रकार उसे अनुमानादिसे प्रतीति आये उसीप्रकार कथन किया है। तथा त्रिलोक,
गुणस्थान, मार्गणा, पुराणादिकके कथन आज्ञानुसार किये हैं। इसलिये हेयोपादेय तत्त्वोंकी
परीक्षा करना योग्य है।
वहाँ जीवादिक द्रव्यों व तत्त्वोंको तथा स्व-परको पहिचानना। तथा त्यागने योग्य
मिथ्यात्वरागादिक और करने योग्य सम्यग्दर्शनादिकका स्वरूप पहिचानना। तथा निमित्त-
नैमित्तिकादिक जैसे हैं, वैसे पहिचानना।इत्यादि मोक्षमार्गमें जिनके जाननेसे प्रवृत्ति होती
है, उन्हें अवश्य जानना। सो इनकी तो परीक्षा करना। सामान्यरूपसे किसी हेतु-युक्ति द्वारा
इनको जानना, व प्रमाण
नय द्वारा जानना, व निर्देशस्वामित्वादिसे और सत्संख्यादिसे इनके
विशेष जानना। जैसी बुद्धि होजैसा निमित्त बने, उसी प्रकार इनको सामान्य-विशेषरूपसे
पहिचानना। तथा इस जाननेमें उपकारी गुणस्थानमार्गणादिक व पुराणादिक व व्रतादिक
क्रियादिकका भी जानना योग्य है। यहाँ जिनकी परीक्षा हो सके उनकी परीक्षा करना, न
हो सके उनकी आज्ञानुसार जानकारी करना।