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पहला अधिकार ][ ११
मंदताके कारण अभ्यास होता नहीं। जैसे कि — दक्षिणमें गोम्मटस्वामीके निकट मूड़बिद्री नगरमें
धवल, महाधवल, जयधवल पाये जाते हैं; परन्तु दर्शनमात्र ही हैं। तथा कितने ही ग्रन्थ
अपनी बुद्धि द्वारा अभ्यास करने योग्य पाये जाते हैं, उनमें भी कुछ ग्रन्थोंका ही
अभ्यास बनता है। ऐसे इस निकृष्ट कालमें उत्कृष्ट जैनमतका घटना तो हुआ, परन्तु
इस परम्परा द्वारा अब भी जैन-शास्त्रोंमें सत्य अर्थका प्रकाशन करनेवाले पदोंका सद्भाव
प्रवर्तमान है।
अपनी बात
हमने इस कालमें यहाँ अब मनुष्यपर्याय प्राप्त की। इसमें हमारे पूर्वसंस्कारसे व भले
होनहारसे जैनशास्त्रोंके अभ्यास करनेका उद्यम हुआ जिससे व्याकरण, न्याय, गणित आदि
उपयोगी ग्रन्थोंका किंचित् अभ्यास करके टीकासहित समयसार, पंचास्तिकाय, प्रवचनसार,
नियमसार, गोम्मटसार, लब्धिसार, त्रिलोकसार, तत्त्वार्थसूत्र इत्यादि शास्त्र और क्षपणासार,
पुरुषार्थसिद्धयुपाय, अष्टपाहुड़, आत्मानुशासन आदि शास्त्र और श्रावक – मुनिके आचारके प्ररूपक
अनेक शास्त्र और सुष्ठुकथासहित पुराणादि शास्त्र — इत्यादि अनेक शास्त्र हैं, उनमें हमारे बुद्धि
अनुसार अभ्यास वर्तता है; हमें भी किंचित् सत्यार्थ पदोंका ज्ञान हुआ है।
पुनश्च, इस निकृष्ट समयमें हम जैसे मंदबुद्धियोंसे भी हीन बुद्धिके धनी बहुत जन
दिखाई देते हैं। उन्हें उन पदोंका अर्थज्ञान हो, इस हेतु धर्मानुरागवश देशभाषामय ग्रंथ रचनेकी
हमें इच्छा हुई है, इसलिये हम यह ग्रन्थ बना रहे हैं। इसमें भी अर्थसहित उन्हीं पदोंका
प्रकाशन होता है। इतना तो विशेष है कि — जिस प्रकार प्राकृत – संस्कृत शास्त्रोंमें प्राकृत –
संस्कृत पद लिखे जाते हैं, उसी प्रकार यहाँ अपभ्रंशसहित अथवा यथार्थतासहित देशभाषारूप
पद लिखते हैं; परन्तु अर्थमें व्यभिचार कुछ नहीं है।
इस प्रकार इस ग्रन्थपर्यन्त उन सत्यार्थपदोंकी परम्परा प्रवर्तती है।
असत्यपद रचना प्रतिषेध
यहाँ कोई पूछता है कि — परम्परा तो हमने इस प्रकार जानी; परन्तु इस परम्परामें
सत्यार्थ पदोंकी ही रचना होती आई, असत्यार्थ पद नहीं मिले, — ऐसी प्रतीति हमें कैसे हो?
उसका समाधानः — असत्यार्थ पदोंकी रचना अति तीव्रकषाय हुए बिना नहीं बनती; क्योंकि
जिस असत्य रचनासे परम्परा अनेक जीवोंका महा बुरा हो और स्वयंको ऐसी महाहिंसाके
फलरूप नरक – निगोदमें गमन करना पड़े — ऐसा महाविपरीत कार्य तो क्रोध, मान, माया, लोभ
अत्यन्त तीव्र होने पर ही होता है; जैनधर्ममें तो ऐसा कषायवान होता नहीं है।