Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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३०२ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
न जानकर कथन नहीं किया। फि र वे साथ मनुष्यपर्यायमें उत्पन्न हुए। इसप्रकार विधि
मिलानेसे विरोध दूर होता है। इसीप्रकार अन्यत्र विधि मिला लेना।
फि र प्रश्न है कि इसप्रकारके कथनोंमें भी किसी प्रकार विधि मिलती है। परन्तु
कहीं नेमिनाथ स्वामीका सौरीपुरमें, कहीं द्वारावतीमें जन्म कहा; तथा रामचन्द्रादिककी कथा अन्य-
अन्य प्रकारसे लिखी है इत्यादि; एकेन्द्रियादिको कहीं सासादन गुणस्थान लिखा, कहीं नहीं
लिखा इत्यादि;
इन कथनोंकी विधि किसप्रकार मिलेगी?
उत्तरःइसप्रकार विरोध सहित कथन कालदोषसे हुए हैं। इस कालमें प्रत्यक्षज्ञानी
व बहुश्रुतोंका तो अभाव हुआ और अल्पबुद्धि ग्रंथ करनेके अधिकारी हुए उनको भ्रमसे कोई
अर्थ अन्यथा भासित हुआ उसको ऐसे लिखा; अथवा इस कालमें कितने ही जैनमतमें भी
कषायी हुए हैं सो उन्होंने कोई कारण पाकर अन्यथा कथन लिखे हैं। इसप्रकार अन्यथा
कथन हुए, इसलिये जैनशास्त्रोंमें विरोध भासित होने लगा।
जहाँ विरोध भासित हो वहाँ इतना करना कि यह कथन करनेवाले बहुत प्रामाणिक
हैं या यह कथन करनेवाले बहुत प्रामाणिक हैं? ऐसे विचार करके बड़े आचार्यादिकोंका कहा
हुआ कथन प्रमाण करना। तथा जिनमतके बहुत शास्त्र हैं उनकी आम्नाय मिलाना। जो
कथन परम्परा आम्नायसे मिले उस कथनको प्रमाण करना। इस प्रकार विचार करने पर भी
सत्य-असत्यका निर्णय न हो सके तो ‘जैसे केवलीको भासित हुए हैं वैसे प्रमाण हैं’ ऐसा
मान लेना, क्योंकि देवादिकका व तत्त्वोंका निर्धार हुए बिना तो मोक्षमार्ग होता नहीं है।
उसका तो निर्धार भी हो सकता है, इसलिये कोई उनका स्वरूप विरुद्ध कहे तो आपको
हीे भासित हो जायेगा। तथा अन्य कथनका निर्धार न हो, या संशयादि रहें, या अन्यथा
भी जानपना हो जाये; और केवलीका कहा प्रमाण है
ऐसा श्रद्धान रहे तो मोक्षमार्गमें विघ्न
नहीं है, ऐसा जानना।
यहाँ कोई तर्क करे कि जैसे नानाप्रकारके कथन जिनमतमें कहे हैं वैसे अन्यमतमें
भी कथन पाये जाते हैं। सो अपने मतके कथनका तो तुमने जिस-तिसप्रकार स्थापन किया
और अन्यमतमें ऐसे कथनको तुम दोष लगाते हो? यह तो तुम्हें राग-द्वेष है?
समाधानःकथन तो नानाप्रकारके हों और एक ही प्रयोजनका पोषण करें तो कोई
दोष नहीं, परन्तु कहीं किसी प्रयोजनका और कहीं किसी प्रयोजनका पोषण करें तो दोष
ही है। अब, जिनमतमें तो एक रागादि मिटानेका प्रयोजन है; इसलिये कहीँ बहुत रागादि
छुड़ाकर थोड़े रागादि करानेके प्रयोजनका पोषण किया है, कहीं सर्व रागादि मिटानेके प्रयोजनका