मिलानेसे विरोध दूर होता है। इसीप्रकार अन्यत्र विधि मिला लेना।
अन्य प्रकारसे लिखी है इत्यादि; एकेन्द्रियादिको कहीं सासादन गुणस्थान लिखा, कहीं नहीं
लिखा इत्यादि;
अर्थ अन्यथा भासित हुआ उसको ऐसे लिखा; अथवा इस कालमें कितने ही जैनमतमें भी
कषायी हुए हैं सो उन्होंने कोई कारण पाकर अन्यथा कथन लिखे हैं। इसप्रकार अन्यथा
कथन हुए, इसलिये जैनशास्त्रोंमें विरोध भासित होने लगा।
हुआ कथन प्रमाण करना। तथा जिनमतके बहुत शास्त्र हैं उनकी आम्नाय मिलाना। जो
कथन परम्परा आम्नायसे मिले उस कथनको प्रमाण करना। इस प्रकार विचार करने पर भी
सत्य-असत्यका निर्णय न हो सके तो ‘जैसे केवलीको भासित हुए हैं वैसे प्रमाण हैं’ ऐसा
मान लेना, क्योंकि देवादिकका व तत्त्वोंका निर्धार हुए बिना तो मोक्षमार्ग होता नहीं है।
उसका तो निर्धार भी हो सकता है, इसलिये कोई उनका स्वरूप विरुद्ध कहे तो आपको
हीे भासित हो जायेगा। तथा अन्य कथनका निर्धार न हो, या संशयादि रहें, या अन्यथा
भी जानपना हो जाये; और केवलीका कहा प्रमाण है
और अन्यमतमें ऐसे कथनको तुम दोष लगाते हो? यह तो तुम्हें राग-द्वेष है?
ही है। अब, जिनमतमें तो एक रागादि मिटानेका प्रयोजन है; इसलिये कहीँ बहुत रागादि
छुड़ाकर थोड़े रागादि करानेके प्रयोजनका पोषण किया है, कहीं सर्व रागादि मिटानेके प्रयोजनका