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आठवाँ अधिकार ][ ३०३
पोषण किया है; परन्तु रागादि बढ़ानेका प्रयोजन कहीं नहीं है, इसलिये जिनमतका सर्व कथन
निर्दोष है। और अन्यमतमें कहीं रागादि मिटानेके प्रयोजन सहित कथन करते हैं, कहीं रागादि
बढ़ानेके प्रयोजन सहित कथन करते हैं; इसीप्रकार अन्य भी प्रयोजनकी विरुद्धता सहित कथन
करते हैं, इसलिये अन्यमतका कथन सदोष है। लोकमें भी एक प्रयोजनका पोषण करनेवाले
नाना कथन कहे उसे प्रामाणिक कहा जाता है और अन्य-अन्य प्रयोजनका पोषण करनेवाली
बात करे उसे बावला कहते हैं।
तथा जिनमतमें नानाप्रकारके कथन हैं सो भिन्न-भिन्न अपेक्षा सहित हैं वहाँ दोष नहीं
है। अन्यमतमें एक ही अपेक्षा सहित अन्य-अन्य कथन करते हैं वहाँ दोष है। जैसे –
जिनदेवके वीतरागभाव है और समवसरणादि विभूति भी पायी जाती है, वहाँ विरोध नहीं
है। समवसरणादि विभूतिकी रचना इन्द्रादिक करते हैं, उनको उसमें रागादिक नहीं है, इसलिये
दोनों बातें सम्भवित हैं। और अन्यमतमें ईश्वरको साक्षीभूत वीतराग भी कहते हैं तथा उसीके
द्वारा किये गये काम-क्रोधादिभाव निरूपित करते हैं, सो एक आत्माको ही वीतरागपना और
काम-क्रोधादि भाव कैसे सम्भवित हैं? इसीप्रकार अन्यत्र जानना।
तथा कालदोषसे जिनमतमें एक ही प्रकारसे कोई कथन विरुद्ध लिखे हैं; सो यह
तुच्छबुद्धियोंकी भूल है, कुछ मतमें दोष नहीं है। वहाँ भी जिनमतका अतिशय इतना है
कि प्रमाणविरुद्ध कथन कोई नहीं कर सकता। कहीं सौरीपुरमें, कही द्वारावतीमें नेमिनाथ
स्वामीका जन्म लिखा है; सो कहीं भी हो, परन्तु नगरमें जन्म होना प्रमाणविरुद्ध नहीं है,
आज भी होते दिखाई देते हैं।
तथा अन्यमतमें सर्वज्ञादिक यथार्थ ज्ञानियोंके रचे हुए ग्रन्थ बतलाते हैं, परन्तु उनमें
परस्पर विरुद्धता भासित होती है। कहीं तो बालब्रह्मचारीकी प्रशंसा करते हैं, कहीं कहते
हैं – ‘पुत्र बिना गति नहीं होती’ – सो दोनों सच्चे कैसे हों? ऐसे कथन वहाँ बहुत पाये जाते
हैं। तथा उनमें प्रमाणविरुद्ध कथन पाये जाते हैं। जैसे – ‘मुखमें वीर्य गिरनेसे मछलीके पुत्र
हुआ’, सो ऐसा इस कालमें किसीके होता दिखाई नहीं देता और अनुमानसे भी नहीं मिलता –
ऐसे कथन भी बहुत पाये जाते हैं। यदि यहाँ सर्वज्ञादिककी भूल माने तो वे कैसे भूलेंगे?
और विरुद्ध कथन माननेमें नहीं आता; इसलिये उनके मतमें दोष ठहराते हैं। ऐसा जानकर
एक जिनमतका ही उपदेश ग्रहण करने योग्य है।
अनुयोगोंका अभ्यासक्रम
वहाँ प्रथमानुयोगादिका अभ्यास करना। पहले इसका अभ्यास करना, फि र इसका