Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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३०८ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
धनकी प्राप्ति हुईवहाँ कुछ आकुलता घटनेसे उसे सुखी कहते हैं और वह भी अपनेको
सुखी मानता है। तथा किसी बहुत धनवानको किंचित् धनकी हानि हुईवहाँ कुछ आकुलता
बढ़नेसे उसे दुःखी कहते हैं और वह भी अपनेको दुःखी मानता है।
इसीप्रकार सर्वत्र जानना।
तथा आकुलता घटना-बढ़ना भी बाह्य सामग्रीके अनुसार नहीं है, कषायभावोंके घटने-
बढ़नेके अनुसार है। जैसेकिसीको थोड़ा धन है और उसे सन्तोष है, तो उसे आकुलता
थोड़ी होती है; तथा किसीको बहुत धन है और उसके तृष्णा है, तो उसे आकुलता बहुत
है। तथा किसीको किसीने बहुत बुरा कहा उसे क्रोध नहीं हुआ तो उसको आकुलता नहीं
होती; और थोड़ी बातें कहनेसे ही क्रोध हो आये तो उसको आकुलता बहुत होती है।
तथा जैसे गायको बछड़ेसे कुछ प्रयोजन नहीं है, परन्तु मोह बहुत है, इसलिये उसकी रक्षा
करनेकी बहुत आकुलता होती है; तथा सुभट के शरीरादिकसे बहुत कार्य सधते हैं, परन्तु
रणमें मानादिकके कारण शरीरादिकसे मोह घट जाये, तब मरनेकी भी थोड़ी आकुलता होती
है। इसलिये ऐसा जानना कि संसार-अवस्थामें भी आकुलता घटने-बढ़नेसे ही सुख-दुःख माने
जाते हैं। तथा आकुलताका घटना-बढ़ना रागादिक कषाय घटने-बढ़नेके अनुसार है।
तथा परद्रव्यरूप बाह्यसामग्रीके अनुसार सुख-दुःख नहीं है। कषायसे इसके इच्छा उत्पन्न
हो और इसकी इच्छा अनुसार बाह्यसामग्री मिले, तब इसके कुछ कषायका उपशमन होनेसे
आकुलता घटती है, तब सुख मानता है
और इच्छानुसार सामग्री नहीं मिलती, तब कषाय
बढ़नेसे आकुलता बढ़ती है और दुःख मानता है। सो है तो इसप्रकार; परन्तु यह जानता
है कि मुझे परद्रव्यके निमित्तसे सुख-दुःख होते हैं। ऐसा जानना भ्रम ही है। इसलिये यहाँ
ऐसा विचार करना कि संसार-अवस्थामें किंचित् कषाय घटनेसे सुख मानते हैं, उसे हित जानते
हैं;
तो जहाँ सर्वथा कषाय दूर होने पर व कषायके कारण दूर होने पर परम निराकुलता
होनेसे अनन्त सुख प्राप्त होता हैऐसी मोक्ष-अवस्थाको कैसे हित न मानें?
तथा संसार-अवस्थामें उच्चपदको प्राप्त करे तो भी या तो विषयसामग्री मिलानेकी
आकुलता होती है, या विषय-सेवनकी आकुलता होती है, या अपनेको अन्य किसी क्रोधादि
कषायसे इच्छा उत्पन्न हो उसे पूर्ण करनेकी आकुलता होती है; कदापि सर्वथा निराकुल नहीं
हो सकता; अभिप्रायमें तो अनेक प्रकारकी आकुलता बनी ही रहती है। और कोई आकुलता
मिटानेके बाह्य उपाय करे; सो प्रथम तो कार्य सिद्ध नहीं होता; और यदि भवितव्ययोगसे
वह कार्य सिद्ध हो जाये तो तत्काल अन्य आकुलता मिटानेके उपायमें लगता है। इसप्रकार