Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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नौवाँ अधिकार ][ ३०९
आकुलता मिटानेकी आकुलता निरन्तर बनी रहती है। यदि ऐसी आकुलता न रहे तो वह
नये-नये विषयसेवनादि कार्योंमें किसलिये प्रवर्त्तता है? इसलिये संसार-अवस्थामें पुण्यके उदयसे
इन्द्र-अहमिन्द्रादि पद प्राप्त करे तो भी निराकुलता नहीं होती, दुःखी ही रहता है। इसलिये
संसार-अवस्था हितकारी नहीं है।
तथा मोक्ष-अवस्थामें किसी भी प्रकारकी आकुलता नहीं रही, इसलिये आकुलता
मिटानेका उपाय करनेका भी प्रयोजन नहीं है; सदाकाल शांत रससे सुखी रहते हैं, इसलिये
मोक्ष-अवस्था ही हितकारी है। पहले भी संसार-अवस्थाके दुःखका और मोक्ष-अवस्थाके सुखका
विशेष वर्णन किया है, वह इसी प्रयोजनके अर्थ किया है। उसे भी विचार कर मोक्षको
हितरूप जानकर मोक्षका उपाय करना। सर्व उपदेशका तात्पर्य इतना है।
पुरुषार्थसे ही मोक्षप्राप्ति
यहाँ प्रश्न है कि मोक्षका उपाय काललब्धि आने पर भवितव्यानुसार बनता है, या
मोहादिके उपशमादि होने पर बनता है, या अपने पुरुषार्थसे उद्यम करने पर बनता है सो
कहो। यदि प्रथम दोनों कारण मिलने पर बनता है तो हमें उपदेश किसलिये देते हो?
और पुरुषार्थसे बनता है तो उपदेश सब सुनते हैं, उनमें कोई उपाय कर सकता है, कोई
नहीं कर सकता; सो कारण क्या?
समाधानःएक कार्य होनेमें अनेक कारण मिलते हैं। सो मोक्षका उपाय बनता है वहाँ
तो पूर्वोक्त तीनों ही कारण मिलते हैं और नहीं बनता वहाँ तीनों ही कारण नहीं मिलते। पूर्वोक्त
तीन कारण कहे उनमें काललब्धि व होनहार तो कोई वस्तु नहीं है; जिस कालमें कार्य बनता
है वही काललब्धि और जो कार्य हुआ वही होनहार। तथा जो कर्मके उपशमादिक हैं वह
पुद्गलकी शक्ति है उसका आत्मा कर्ताहर्ता नहीं है। तथा पुरुषार्थसे उद्यम करते हैं सो यह
आत्माका कार्य है; इसलिए आत्माको पुरुषार्थसे उद्यम करनेका उपदेश देते हैं।
वहाँ यह आत्मा जिस कारणसे कार्यसिद्धि अवश्य हो उस कारणरूप उद्यम करे, वहाँ
तो अन्य कारण मिलते ही मिलते हैं और कार्यकी भी सिद्धि होती ही जाती है। तथा
जिस कारणसे कार्यकी सिद्धि हो अथवा नहीं भी हो, उस कारणरूप उद्यम करे, वहाँ अन्य
कारण मिलें तो कार्यसिद्धि होती है, न मिलें तो सिद्धि नहीं होती।
सो जिनमतमें जो मोक्षका उपाय कहा है, इससे मोक्ष होता ही होता है। इसलिये
जो जीव पुरुषार्थसे जिनेश्वरके उपदेशानुसार मोक्षका उपाय करता है उसके काललब्धि व
होनहार भी हुए और कर्मके उपशमादि हुए हैं तो वह ऐसा उपाय करता है। इसलिये जो