Moksha-Marg Prakashak (Hindi) (Original language).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh
શ્રી દિગંબર જૈન સ્વાધ્યાયમંદિર ટ્રસ્ટ, સોનગઢશ્રી દિગંબર જૈન સ્વાધ્યાયમંદિર ટ્રસ્ટ, સોનગઢ - - ૩૬૪૨૫૦
नौवाँ अधिक ार ][ ३१७
इसलिये इन दो जातियोंका श्रद्धान न होने पर मोक्ष नहीं होता। इसप्रकार यह दो सामान्य
तत्त्व तो अवश्य श्रद्धान करने योग्य कहे हैं।
तथा आस्रवादि पाँच कहे, वे जीव-पुद्गलकी पर्याय हैं; इसलिये यह विशेषरूप तत्त्व
हैं; सो इन पाँच पर्यायोंको जाननेसे मोक्षका उपाय करनेका श्रद्धान होता है।
वहाँ मोक्षको पहिचाने तो उसे हित मानकर उसका उपाय करे; इसलिये मोक्षका श्रद्धान
करना।
तथा मोक्षका उपाय संवर-निर्जरा है; सो इनको पहिचाने तो जैसे संवर-निर्जरा हो वैसे
प्रवर्ते, इसलिये संवर-निर्जराका श्रद्धान करना।
तथा संवर-निर्जरा तो अभावलक्षण सहित हैं; इसलिये जिनका अभाव करना है उनको
पहिचानना चाहिये। जैसेक्रोधका अभाव होने पर क्षमा होती है; सो क्रोधको पहिचाने तो
उसका अभाव करके क्षमारूप प्रवर्तन करे। उसी प्रकार आस्रवका अभाव होने पर संवर
होता है और बन्धका एकदेश अभाव होने पर निर्जरा होती है; सो आस्रव-बन्धको पहिचाने
तो उनका नाश करके संवर-निर्जरारूप प्रवर्तन करे; इसलिये आस्रव-बन्धका श्रद्धान करना।
इस प्रकार इन पाँच पर्यायोंका श्रद्धान होने पर ही मोक्षमार्ग होता है, इनको न पहिचाने
तो मोक्षकी पहिचान बिना उसका किसलिये करे? संवर-निर्जराकी पहिचान बिना उनमें कैसे
प्रवर्तन करे? आस्रव-बन्धकी पहिचान बिना उनका नाश कैसे करे?
इसप्रकार इन पाँच
पर्यायोंका श्रद्धान न होने पर मोक्षमार्ग नहीं होता।
इसप्रकार यद्यपि तत्त्वार्थ अनन्त हैं, उनका सामान्य-विशेषसे अनेक प्रकार प्ररूपण हो;
परन्तु यहाँ एक मोक्षका प्रयोजन है; इसलिये दो तो जाति-अपेक्षा सामान्यतत्त्व और पाँच
पर्यायरूप विशेषतत्त्व मिलाकर सात ही कहे।
इनके यथार्थ श्रद्धानके आधीन मोक्षमार्ग है। इनके सिवा औरोंका श्रद्धान हो या
न हो या अन्यथा श्रद्धान हो; किसीके आधीन मोक्षमार्ग नहीं है ऐसा जानना।
तथा कहीं पुण्य-पापसहित नव पदार्थ कहे हैं; सो पुण्य-पाप आस्रवादिकके ही विशेष
हैं, इसलिये सात तत्त्वोंमें गर्भित हुए। अथवा पुण्य-पापका श्रद्धान होने पर पुण्यको मोक्षमार्ग
न माने, या स्वच्छन्दी होकर पापरूप न प्रवर्ते; इसलिये मोक्षमार्गमें इनका श्रद्धान भी उपकारी
जानकर दो तत्त्व विशेषके विशेष मिलाकर नवपदार्थ कहे। तथा समयसारादिमें इनको नवतत्त्व
भी कहा है।
फि र प्रश्नःइनका श्रद्धान सम्यग्दर्शन कहा; सो दर्शन तो सामान्य अवलोकनमात्र और