Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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नौवाँ अधिकार ][ ३३३
उसे अवगाढ़सम्यक्त्व कहते हैं। केवलज्ञानीके जो तत्त्वश्रद्धान है, उसको परमावगाढ़सम्यक्त्व
कहते हैं।
ऐसे दो भेद ज्ञानके सहकारीपनेकी अपेक्षा किये।
इस प्रकार सम्यक्त्वके दस भेद किये।
वहाँ सर्वत्र सम्यक्त्वका स्वरूप तत्त्वार्थश्रद्धान ही जानना।
तथा सम्यक्त्वके तीन भेद किये हैंः
औपशमिक, २क्षायोपशमिक, ३क्षायिक।
सो यह तीन भेद दर्शनमोहकी अपेक्षा किये हैं।
वहाँ औपशमिक सम्यक्त्वके दो भेद हैंप्रथमोपशमसम्यक्त्व और द्वितीयोपशम-
सम्यक्त्व। वहाँ मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें करण द्वारा दर्शनमोहका उपशम करके जो सम्यक्त्व
उत्पन्न हो, उसे प्रथमोपशमसम्यक्त्व कहते हैं।
वहाँ इतना विशेष हैअनादि मिथ्यादृष्टिके तो एक मिथ्यात्वप्रकृतिकाही उपशम होता
है, क्योंकि इसके मिश्रमोहनीय और सम्यक्त्वमोहनीयकी सत्ता है नहीं। जब जीव
उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हो, वहाँ उस सम्यक्त्वके कालमें मिथ्यात्वके परमाणुओंको मिश्रमोहनीयरूप
व सम्यक्त्वमोहनीयरूप परिणमित करता है तब तीन प्रकृतियोंकी सत्ता होती है; इसलिये अनादि
मिथ्यादृष्टिके एक मिथ्यात्वप्रकृतिकी सत्ता है, उसीका उपशम होता है। तथा सादि मिथ्यादृष्टिके
किसीके तीन प्रकृतियों की सत्ता है, किसीके एककी ही सत्ता है। जिसके सम्यक्त्वकालमें
तीनकी सत्ता हुई थी वह सत्ता पायी जाये, उसके तीनकी सत्ता है और जिसके मिश्रमोहनीय,
सम्यक्त्वमोहनीयकी उद्वेलना हो गई हो, उनके परमाणु मिथ्यात्वरूप परिणमित हो गये हों,
उसके एक मिथ्यात्वकी सत्ता है; इसलिये सादि मिथ्यादृष्टिके तीन प्रकृतियोंका व एक प्रकृतिका
उपशम होता है।
उपशम क्या? सो कहते हैंःअनिवृत्तिकरणमें किये अन्तरकरणविधानसे जो सम्यक्त्वके
कालमें उदय आने योग्य निषेक थे, उनका तो अभाव किया, उनके परमाणु अन्यकालमें उदय
आने योग्य निषेकरूप किये। तथा अनिवृत्तिकरणमें ही किये उपशम विधानसे जो उस कालके
पश्चात् उदय आने योग्य निषेक थे, वे उदीरणारूप होकर इस कालमें उदय न आ सकें
ऐसे किये।
इसप्रकार जहाँ सत्ता तो पायी जाये और उदय न पाया जायेउसका नाम उपशम है।
यह मिथ्यात्वसे हुआ प्रथमोपशमसम्यक्त्व है, सो चतुर्थादि सप्तम गुणस्थानपर्यन्त पाया
जाता है।