Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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३३४ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
तथा उपशमश्रेणीके सन्मुख होने पर सप्तमगुणस्थानमें क्षयोपशमसम्यक्त्वसे जो
उपशमसम्यक्त्व हो, उसका नाम द्वितीयोपशमसम्यक्त्व है। यहाँ करण द्वारा तीन ही प्रकृतियोंका
उपशम होता है, क्योंकि इसके तीनकी ही सत्ता पायी जाती है। यहाँ भी अन्तरकरण विधानसे
व उपशम विधानसे उनके उदयका अभाव करता है, वही उपशम है। सो यह
द्वितीयोपशमसम्यक्त्व सप्तमादि ग्यारहवें गुणस्थान पर्यन्त होता है। गिरते हुए किसीके छट्ठे,
पाँचवें और चौथे भी रहता है
ऐसा जानना।
इस प्रकार उपशमसम्यक्त्व दो प्रकारका है। यो यह सम्यक्त्व वर्तमानकालमें क्षायिकवत्
निर्मल है; इसके प्रतिपक्षी कर्मकी सत्ता पायी जाती है, इसलिये अन्तर्मुहूर्त कालमात्र यह सम्यक्त्व
रहता है। पश्चात् दर्शनमोहका उदय आता है
ऐसा जानना।
इसप्रकार उपशमसम्यक्त्वका स्वरूप कहा।
तथा जहाँ दर्शनमोहकी तीन प्रकृतियोंमें सम्यक्त्वमोहनीयका उदय हो, अन्य दोका उदय
न हो, वहाँ क्षयोपशमसम्यक्त्व होता है। उपशमसम्यक्त्वका काल पूर्ण होने पर यह सम्यक्त्व
होता है व सादिमिथ्यादृष्टिके मिथ्यात्वगुणस्थानसे व मिश्रगुणस्थानसे भी इसकी प्राप्ति होती है।
क्षयोपशम क्या? सो कहते हैंःदर्शनमोहकी तीन प्रकृतियोंमें जो मिथ्यात्वका अनुभाग
है, उसके अनन्तवें भाग मिश्रमोहनीयका है, उसके अनन्तवें भाग सम्यक्त्वमोहनीयका है। इनमें
सम्यक्त्वमोहनीय प्रकृति देशघाती है; इसका उदय होने पर भी सम्यक्त्वका घात नहीं होता।
किंचित् मलिनता करे, मूलघात न कर सके, उसीका नाम देशघाती है।
सो जहाँ मिथ्यात्व व मिश्रमिथ्यात्वके वर्तमान कालमें उदय आने योग्य निषेकोंका उदय
हुए बिना ही निर्जरा होती है वह तो क्षय जानना और इन्हींके आगामीकालमें उदय आने योग्य
निषेकोंकी सत्ता पायी जाये वही उपशम है और सम्यक्त्वमोहनीयका उदय पाया जाता है, ऐसी
दशा जहाँ हो सो क्षयोपशम है; इसलिये समलतत्त्वार्थश्रद्धान हो वह क्षयोपशमसम्यक्त्व है।
यहाँ जो मल लगता है, उसका तारतम्यस्वरूप तो केवली जानते हैं; उदाहरण बतलानेके
अर्थ चल मलिन अगाढ़पना कहा है। वहाँ व्यवहारमात्र देवादिककी प्रतीति तो हो, परन्तु
अरहन्तदेवादिमें
यह मेरा है, यह अन्यका है, इत्यादि भाव सो चलपना है। शंकादि मल
लगे सो मलिनपना है। यह शान्तिनाथ शांतिकर्ता हैं, इत्यादि भाव सो अगाढ़पना है। ऐसे
उदाहरण व्यवहारमात्र बतलाये, परन्तु नियमरूप नहीं हैं। क्षयोपशमसम्यक्त्वमें जो नियमरूप
कोई मल लगता है सो केवली जानते हैं। इतना जानना कि इसके तत्त्वार्थश्रद्धानमें किसी
प्रकारसे समलपना होता है, इसलिये यह सम्यक्त्व निर्मल नहीं है। इस क्षयोपशमसम्यक्त्वका
एक ही प्रकार है, इसमें कुछ भेद नहीं है।