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रहस्यपूर्ण चिठ्ठी ][ ३४५
ऐसा लक्षण कहा है – ‘‘स्पष्टप्रतिभासात्मकं प्रत्यक्षमस्पष्टं परोक्षं।’’
जो ज्ञान अपने विषयको निर्मलतारूप स्पष्टतया भलीभाँति जाने सो प्रत्यक्ष और जो
स्पष्ट भलीभाँति न जाने सो परोक्ष। वहाँ मतिज्ञान-श्रुतज्ञानके विषय तो बहुत हैं, परन्तु एक
भी ज्ञेयको सम्पूर्ण नहीं जान सकता, इसलिये परोक्ष कहे और अवधि – मनःपर्ययज्ञानके विषय
थोड़े हैं; तथापि अपने विषयको स्पष्ट भलीभाँति जानते हैं, इसलिये एकदेश प्रत्यक्ष हैं और
केवलज्ञान सर्व ज्ञेयको आप स्पष्ट जानता है इसलिये सर्वप्रत्यक्ष है।
तथा प्रत्यक्षके दो भेद हैंः – एक परमार्थ प्रत्यक्ष, दूसरा सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष। वहाँ
अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान तो स्पष्ट प्रतिभासरूप हैं ही, इसलिये पारमार्थिक प्रत्यक्ष
हैं। तथा नेत्रादिकसे वर्णादिकको जानते हैं वहाँ व्यवहारसे ऐसा कहते हैं – ‘इसने वर्णादिक
प्रत्यक्ष जाने’, एकदेश निर्मलता भी पाई जाती है, इसलिये इनको सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते
हैं; परन्तु यदि एक वस्तुमें अनेक मिश्र वर्ण हैं वे नेत्र द्वारा भलीभाँति नहीं ग्रहण किये
जाते हैं, इसलिये इसको परमार्थ-प्रत्यक्ष नहीं कहा जाता है।
तथा परोक्ष प्रमाणके पांच भेद हैंः – स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान, और आगम।
वहाँ पूर्व कालमें जो वस्तु जानी थी उसे याद करके जानना, उसे स्मृति कहते हैं।
दृष्टांत द्वारा वस्तुका निश्चय किया जाये उसे प्रत्यभिज्ञान कहते हैं। हेतुके विचारयुक्त जो
ज्ञान उसे तर्क कहते हैं। हेतुसे साध्य वस्तुका जो ज्ञान उसे अनुमान कहते हैं। आगमसे
जो ज्ञान हो उसे आगम कहते हैं।
ऐसे प्रत्यक्ष-परोक्ष प्रमाणके भेद कहे हैं।
वहाँ इस स्वानुभवदशामें जो आत्माको जाना जाता है सो श्रुतज्ञान द्वारा जाना जाता
है। श्रुतज्ञान है वह मतिज्ञानपूर्वक ही है, वे मतिज्ञान-श्रुतज्ञान परोक्ष कहे हैं, इसलिये यहाँ
आत्माका जानना प्रत्यक्ष नहीं है। तथा अवधि-मनःपर्ययका विषय रूपी पदार्थ ही है और
केवलज्ञान छद्मस्थके है नहीं, इसलिये अनुभवमें अवधि-मनःपर्यय-केवल द्वारा आत्माका जानना
नहीं है। तथा यहाँ आत्माको स्पष्ट भलीभाँति नहीं जानता है, इसलिये पारमार्थिक प्रत्यक्षपना
तो सम्भव नहीं है।
तथा जैसे नेत्रादिकसे वर्णादिक जानते हैं वैसे एकदेश निर्मलता सहित भी आत्माके
असंख्यात प्रदेशादिक नहीं जानते हैं, इसलिये सांव्यवहारिक प्रत्यक्षपना भी संभव नहीं है।
यहाँ पर तो आगम-अनुमानादिक परोक्ष ज्ञानसे आत्माका अनुभव होता है। जैनागममें