Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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रहस्यपूर्ण चिठ्ठी ][ ३४७
है। उसीप्रकार अनुभवमें आत्मा प्रत्यक्षकी भाँति यथार्थ प्रतिभासित होता है, इसलिये इस
न्यायसे आत्माका भी प्रत्यक्ष जानना होता है
ऐसा कहें तो दोष नहीं है। कथन तो अनेक
प्रकारसे है, वह सर्व आगम-अध्यात्म शास्त्रोंसे जैसे विरोध न हो वैसे विवक्षाभेदसे कथन
जानना।
यहाँ प्रश्नःऐसा अनुभव कौनसे गुणस्थानमें होता है?
उसका समाधानःचौथेसे ही होता है, परन्तु चौथेमें तो बहुत कालके अन्तरालसे होता
है और ऊपरके गुणस्थानोंमें शीघ्र-शीघ्र होता है।
फि र यहाँ प्रश्नःअनुभव तो निर्विकल्प है, वहाँ ऊपरके और नीचेके गुणस्थानोंमें भेद
क्या?
उसका समाधानःपरिणामोंकी मग्नतामें विशेष है। जैसे दो पुरुष नाम लेते हैं और
दोनोंके ही परिणाम नाममें हैं; वहाँ एकको तो मग्नता विशेष है और एकको थोड़ी है
उसीप्रकार जानना।
फि र प्रश्नःयदि निर्विकल्प अनुभवमें कोई विकल्प नहीं है तो शुक्लध्यानका प्रथम भेद
पृथक्त्ववितर्कविचार कहा, वहाँ ‘पृथक्त्ववितर्क’नाना प्रकारके श्रुतका ‘विचार’अर्थ-व्यंजन-
योगसंक्रमणऐसा क्यों कहा?
समाधानःकथन दो प्रकार हैएक स्थूलरूप है, एक सूक्ष्मरूप है। जैसे स्थूलतासे
तो छठवें ही गुणस्थानमें सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत कहा और सूक्ष्मतासे नववें गुणस्थान तक मैथुन
संज्ञा कही; उसीप्रकार यहाँ अनुभवमें निर्विकल्पता स्थूलरूप कहते हैं। तथा सूक्ष्मतासे
पृथक्त्ववितर्क विचारादिक भेद व कषायादिक दसवें गुणस्थान तक कहे हैं। वहाँ अपने जाननेमें
व अन्यके जाननेमें आये ऐसे भावका कथन स्थूल जानना, तथा जो आप भी न जाने और
केवली भगवान ही जानें
ऐसे भावका कथन सूक्ष्म जानना। चरणानुयोगादिकमें स्थूलकथनकी
मुख्यता है और करणानुयोगमें सूक्ष्मकथनकी मुख्यता है;ऐसा भेद अन्यत्र भी जानना।
इसप्रकार निर्विकल्प अनुभवका स्वरूप जानना।
तथा भाईजी, तुमने तीन दृष्टान्त लिखे व दृष्टान्तमें प्रश्न लिखा, सो दृष्टान्त सर्वांग
मिलता नहीं है। दृष्टान्त है वह एक प्रयोजनको बतलाता है; सो यहाँ द्वितीयाका विधु
(चन्द्रमा), जलबिन्दु, अग्निकणिका
यह तो एकदेश हैं और पूर्णमासीका चन्द्र, महासागर तथा
अग्निकुण्डयह सर्वदेश हैं। उसीप्रकार चौथे गुणस्थानमें आत्माके ज्ञानादिगुण एकदेश प्रगट