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परमार्थवचनिका ][ ३५३
इन दोनोंका स्वरूप सर्वथा प्रकार तो केवलज्ञानगोचर है, अंशमात्र मति-श्रुतज्ञान ग्राह्य
है, इसलिये सर्वथाप्रकार आगमी अध्यात्मी तो केवली, अंशमात्र मतिश्रुतज्ञानी, देशमात्र ज्ञाता
अवधिज्ञानी मनःपर्ययज्ञानी; – यह तीनों यथावस्थित ज्ञानप्रमाण न्यूनाधिकरूप जानना।
मिथ्यादृष्टि जीव न आगमी, न अध्यात्मी है। क्यों? इसलिये कि कथनमात्र तो
ग्रन्थपाठसे बलसे आगम – अध्यात्मका स्वरूप उपदेशमात्र कहता है, परन्तु आगम अध्यात्मका
स्वरूप सम्यक्प्रकारसे नहीं जानता; इसलिये मूढ जीव न आगामी, न अध्यात्मी निर्वेदकत्वात्।
अब, मूढ तथा ज्ञानी जीवका विशेषपना और भी सुनोः –
ज्ञाता तो मोक्षमार्ग साधना जानता है, मूढ मोक्षमार्गको साधना नहीं जानता।
क्यों? – इसलिये, सुनो! मूढ़ जीव आगमपद्धतिको व्यवहार कहता है, अध्यात्म-पद्धतिको
निश्चय कहता है; इसलिये आगम-अंगको एकान्तपने साधकर मोक्षमार्ग दिखलाता है, अध्यात्म-
अंगको व्यवहारसे नहीं जानता – यह मूढदृष्टिका स्वभाव है; उसे इसीप्रकार सूझता है।
क्यों? इसलिये कि आगम-अंग बाह्यक्रियारूप प्रत्यक्ष-प्रमाण है, उसका स्वरूप साधना
सुगम। वह बाह्यक्रिया करता हुआ मूढ जीव अपनेको मोक्षका अधिकारी मानता है; अन्तर्गर्भित
जो अध्यात्मरूप क्रिया वह अन्तर्दृष्टिग्राह्य है, वह क्रिया मूढ जीव नहीं जानता। अन्तर्दृष्टिके
अभावसे अन्तर्क्रिया दृष्टिगोचर नहीं होती, इसलिये मिथ्यादृष्टि जीव मोक्षमार्ग साधनेमें असमर्थ है।
अब, सम्यग्दृष्टिका विचार सुनोः –
सम्यग्दृष्टि कौन है सो सुनो – संशय, विमोह, विभ्रम – ये तीन भाव जिसमें नहीं सो
सम्यग्दृष्टि।
संशय, विमोह, विभ्रम क्या है? उसका स्वरूप दृष्टान्त द्वारा दिखलाते हैं सो सुनो –
जैसे चार पुरुष किसी एक स्थानमें खड़े थे। उन चारोंके पास आकर किसी और पुरुषने
एक सीपका टुकड़ा दिखाया और प्रत्येकसे प्रश्न किया कि यह क्या है? – सीप है या चाँदी
है? प्रथम ही एक संशयवान पुरुष बोला – कुछ सुध (समझ) नहीं पड़ती कि यह सीप है
या चाँदी है? मेरी दृष्टिमें इसका निरधार नहीं होता। दूसरा विमोहवान पुरुष बोला – मुझे
यह समझ नहीं है कि तुम सीप किससे कहते हो, चाँदी किससे कहते हो? मेरी दृष्टिमें
कुछ नहीं आता, इसलिये हम नहीं जानते कि तू क्या कहता है। अथवा चुप हो रहता
है बोलता नहीं गहलरूपसे। तीसरा विभ्रमवाला पुरुष भी बोला कि यह तो प्रत्यक्षप्रमाण
चाँदी है, इसे सीप कौन कहेगा? मेरी दृष्टिमें तो चाँदी सूझती है, इसलिये सर्वथा प्रकार