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३५६ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
परिशिष्ट ४
उपादान-निमित्तकी चिट्ठी
[ कविवर पं० बनारसीदासजी लिखित ]
प्रथम ही कोई पूछता है कि निमित्त क्या, उपादान क्या?
उसका विवरण – निमित्त तो संयोगरूप कारण, उपादान वस्तुकी सहजशक्ति।
उसका विवरण – एक द्रव्यार्थिक निमित्त-उपादान, एक पर्यायार्थिक निमित्त-उपादान।
उसका विवरण – द्रव्यार्थिक निमित्त-उपादान गुणभेदकल्पना, पर्यायार्थिक निमित्त-उपादान
परयोगकल्पना। उसकी चौभंगी।
प्रथम ही गुणभेदकल्पनाकी चौभंगीका विस्तार कहता हूँ। सो किसप्रकार? इसप्रकार,
सुनो – जीवद्रव्य, उसके अनंतगुण, सब गुण असहाय स्वाधीन सदाकाल। उनमें दो गुण प्रधान-
मुख्य स्थापित किये; उस पर चौभंगीका विचार –
एक तो जीवका ज्ञानगुण, दूसरा जीवका चारित्रगुण। ये दोनों गुण शुद्धरूप भाव
जानने, अशुद्धरूप भी जानने, यथायोग्य स्थानक मानने। उसका विवरण – इन दोनोंकी गति
न्यारी-न्यारी, शक्ति न्यारी-न्यारी, जाति न्यारी-न्यारी, सत्ता न्यारी-न्यारी।
उसका विवरण – ज्ञानगुणकी तो ज्ञान-अज्ञानरूप गति, स्व-परप्रकाशक शक्ति, ज्ञानरूप तथा
मिथ्यात्वरूप जाति, द्रव्यप्रमाण सत्ता; परन्तु एक विशेष इतना कि – ज्ञानरूप जातिका नाश नहीं
है, मिथ्यात्वरूप जातिका नाश सम्यग्दर्शनकी उत्पत्ति होने पर; – यह तो ज्ञानगुणका निर्णय हुआ।
अब चारित्रगुणका विवरण कहते हैं – संक्लेश – विशुद्धरूप गति, थिरता-अस्थिरता शक्ति,
मंद-तीव्ररूप जाति, द्रव्यप्रमाण सत्ता; परन्तु एक विशेष मन्दताकी स्थिति चौदहवें गुणस्थान
पर्यन्त है, तीव्रताकी स्थिति पाँचवें गुणस्थान पर्यन्त है।
यह तो दोनोंका गुणभेद न्यारा-न्यारा किया। अब इनकी व्यवस्था – न ज्ञान चारित्रके
आधीन है, न चारित्र ज्ञानके आधीन है; दोनों असहायरूप हैं। यह तो मर्यादाबंध है।
अब, चौभंगीका विचार-ज्ञानगुण निमित्त, चारित्रगुण उपादानरूप, उसका विवरणः –
एक तो अशुद्ध निमित्त, अशुद्ध उपादान; दूसरा अशुद्ध निमित्त, शुद्ध उपादान; तीसरा
शुद्ध निमित्त, अशुद्ध उपादान; चौथा शुद्ध निमित्त, शुद्ध उपादान।