जानरूप ज्ञान, विशुद्ध चारित्र; किसी समय अजानरूप ज्ञान, विशुद्ध चारित्र; किसी समय
जानरूप ज्ञान, संक्लेशरूप चारित्र; किसी समय अजानरूप ज्ञान, संक्लेश चारित्र। जिस समय
अजानरूप गति ज्ञानकी, संक्लेशरूप गति चारित्रकी; उस समय निमित्त-उपादान दोनों अशुद्ध।
किसी समय अजानरूप ज्ञान, विशुद्धरूप चारित्र; उस समय अशुद्ध निमित्त, शुद्ध उपादान।
किसी समय जानरूप ज्ञान, संक्लेशरूप चारित्र; उस समय शुद्ध निमित्त, अशुद्ध उपादान।
किसी समय जानरूप ज्ञान, विशुद्धरूप चारित्र; उस समय शुद्ध निमित्त, शुद्ध उपादान।
ये यहाँ ही रहेंगे
सम्यक्-शुद्धता नहीं, गर्भित शुद्धता; जब वस्तुका स्वरूप जाने तब सम्यक्शुद्धता; वह ग्रन्थिभेदके
बिना नहीं होती; परन्तु गर्भित शुद्धता सो भी अकामनिर्जरा है।
मन्द है, उस मन्दतासे निर्जरा है। किसी समय चारित्रगुण संक्लेशरूप है, इसलिये केवल
तीव्रबंध है। इसप्रकार मिथ्या-अवस्थामें जिस समय जानरूप ज्ञान है और विशुद्धतारूप चारित्र
है, उस समय निर्जरा है। जिस समय अजानरूप ज्ञान है, संक्लेशरूप चारित्र है, उस समय
बंध है। उसमें विशेष इतना कि अल्प निर्जरा बहुत बंध इसलिये मिथ्यात्व-अवस्थामें केवल
बंध कहा; अल्पकी अपेक्षा। जैसा किसी पुरुषको नफा थोड़ा टोटा बहुत, उस पुरुषको
टोटावाला ही कहा जाय। परन्तु बंध-निर्जराके बिना जीव किसी अवस्थामें नहीं है। दृष्टांत
यह कि