Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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३५८ ] [ उपादान-निमित्तका चिठ्ठी
बल नहीं है। विशुद्धरूप चारित्रके बलसे जीव व्यवहारराशिमें चढ़ता है, जीवद्रव्यमें कषायकी
मन्दता होती है, उससे निर्जरा होती है। उसी मन्दताके प्रमाणमें शुद्धता जानना।
अब और भी विस्तार सुनोः
जानपना ज्ञानका और विशुद्धता चारित्रकी दोनों मोक्षमार्गानुसारी हैं, इसलिये दोनोंमें
विशुद्धता मानना; परन्तु विशेष इतना कि गर्भितशुद्धता प्रगट शुद्धता नहीं है। इन दोनों
गुणोंकी गर्भितशुद्धता जब तक ग्रन्थिभेद न हो तब तक मोक्षमार्ग नहीं साधती; परन्तु ऊर्ध्वताको
करे, अवश्य ही क रे। इन दोनों गुणोंकी गर्भितशुद्धता जब ग्रन्थिभेद होता है तब इन दोनोंकी
शिखा फू टती है, तब दोनों गुण धाराप्रवाहरूपसे मोक्षमार्गको चलते हैं; ज्ञानगुणकी शुद्धतासे
ज्ञानगुण निर्मल होता है, चारित्रगुणकी शुद्धतासे चारित्रगुण निर्मल होता है। वह केवलज्ञानका
अंकुर, वह यथाख्यातचारित्रका अंकुर।
यहाँ कोई प्रश्न करता है कि तुमने कहा कि जानपना और चारित्रकी विशुद्धता
दोनोंसे निर्जरा है; वहाँ ज्ञानके जानपनेसे निर्जरा, यह हमने माना; चारित्रकी विशुद्धतासे निर्जरा
कैसे? यह हम नहीं समझे।
उसका समाधानःसुन भैया! विशुद्धता स्थिरतारूप परिणामसे कहते हैं; वह स्थिरता
यथाख्यातका अंश है; इसलिये विशुद्धतामें शुद्धता आयी।
वह प्रश्नकार बोलातुमने विशुद्धतासे निर्जरा कही। हम कहते हैं कि विशुद्धतासे
निर्जरा नहीं है, शुभबन्ध है।
उसका समाधान :सुन भैया! यह तो तू सच्चा; विशुद्धतासे शुभबन्ध, संक्लेशतासे
अशुभबन्ध, यह तो हमने भी माना, परन्तु और भेद इसमें हैं सो सुनअशुभपद्धति अधोगतिका
परिणमन है, शुभपद्धति ऊर्ध्वगतिका परिणमन है; इसलिये अधोरूप संसार और ऊर्ध्वरूप
मोक्षस्थान पकड़ (स्वीकार कर), शुद्धता उसमें आयी मान, मान, इसमें धोखा नहीं है; विशुद्धता
सदाकाल मोक्षका मार्ग है, परन्तु ग्रन्थिभेद बिना शुद्धताका जोर नहीं चलता है न?
जैसेकोई पुरुष नदीमें डुबकी मारे, फि र जब उछले तब दैवयोगसे उस पुरुषके ऊपर
नौका आ जाये तो यद्यपि वह तैराक पुरुष है तथापि किस भाँति निकले? उसका जोर
नहीं चलता; बहुत कलबल करे परन्तु कुछ वश नहीं चलता; उसीप्रकार विशुद्धताकी भी
ऊर्ध्वता जाननी। इसलिये गर्भितशुद्धता कही है। वह गर्भितशुद्धता ग्रन्थिभेद होने पर
मोक्षमार्गको चली; अपने स्वभावसे वर्द्धमानरूप हुई तब पूर्ण यथाख्यात प्रगट कहा गया।
विशुद्धता की जो ऊर्ध्वता वही उसकी शुद्धता।