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३६ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
ज्ञान-दर्शनोपयोगादिकी प्रवृत्ति
इस प्रकार ज्ञान – दर्शनका सद्भाव ज्ञानावरण, दर्शनावरणके क्षयोपशमके अनुसार होता
है। जब क्षयोपशम थोड़ा होता है तब ज्ञान – दर्शनकी शक्ति थोड़ी होती है; जब बहुत होता
है तब बहुत होती है। तथा क्षयोपशमसे शक्ति तो ऐसी बनी रहती है, परन्तु परिणमन द्वारा
एक जीवको एक कालमें एक विषयका ही देखना और जानना होता है। इस परिणमन ही
का नाम उपयोग है। वहाँ एक जीवको एक कालमें या तो ज्ञानोपयोग होता है या दर्शनोपयोग
होता है। तथा एक उपयोगके भी एक भेदकी प्रवृत्ति होती है। जैसे — मतिज्ञान हो तब अन्य
ज्ञान नहीं होता। तथा एक भेदमें भी एक विषयमें ही प्रवृत्ति होती है। जैसे — स्पर्शको जानता
है तब रसादिकको नहीं जानता। तथा एक विषयमें भी उसे किसी एक अङ्गमें ही प्रवृत्ति होती
है। जैसे — उष्ण स्पर्शको जानता है तब रूक्षादिकको नहीं जानता।
इस प्रकार एक जीवको एक कालमें एक ज्ञेय अथवा दृश्यमें ज्ञान अथवा दर्शनका
परिणमन जानना। ऐसा ही दिखाई देता है। जब सुननेमें उपयोग लगा हो तब नेत्रके समीप
स्थित भी पदार्थ नहीं दीखता। इस ही प्रकार अन्य प्रवृत्ति देखी जाती है।
तथा परिणमनमें शीघ्रता बहुत है। इससे किसी कालमें ऐसा मान लेते हैं कि युगपत्
भी अनेक विषयोंका जानना तथा देखना होता है, किन्तु युगपत् होता नहीं है, क्रममें ही
होता है, संस्कारबलसे उनका साधन रहता है। जैसे — कौएके नेत्रके दो गोलक हैं, पुतली
एक है वह फि रती शीघ्र है, उससे दोनों गोलकोंका साधन करती है; उसी प्रकार इस जीवके
द्वार तो अनेक हैं और उपयोग एक है, वह फि रता शीघ्र है, उससे सर्व द्वारोंका साधन
रहता है।
यहाँ प्रश्न है कि — एक कालमें एक विषयका जानना अथवा देखना होता है तो
इतना ही क्षयोपशम हुआ कहो, बहुत क्यों कहते हो? और तुम कहते हो कि क्षयोपशमसे
शक्ति होती है, तो शक्ति तो आत्मामें केवलज्ञान – दर्शनकी भी पाई जाती है।
समाधानः — जैसे किसी पुरुषके बहुत ग्रामोंमें गमन करनेकी शक्ति है। तथा उसे किसीने
रोका और यह कहा कि पाँच ग्रामोंमें जाओ, परन्तु एक दिनमें एक ग्रामको जाओ। वहाँ उस
पुरुषके बहुत ग्राम जानेकी शक्ति तो द्रव्य-अपेक्षा पाई जाती है; अन्य कालमें सामर्थ्य हो, परन्तु
वर्तमान सामर्थ्यरूप नहीं है — क्योंकि वर्तमानमें पाँच ग्रामोंसे अधिक ग्रामोंमें गमन नहीं कर
सकता। तथा पाँच ग्रामोंमें जानेकी पर्याय-अपेक्षा वर्त्तमान सामर्थ्यरूप शक्ति है, क्योंकि उनमें गमन
कर सकता है; तथा व्यक्तता एक दिनमें एक ग्रामको गमन करनेकी ही पाई जाती है।