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दूसरा अधिकार ][ ३७
उसी प्रकार इस जीवके सर्वको देखने – जाननेकी शक्ति है। तथा उसे कर्मने रोका
इतना क्षयोपशम हुआ कि स्पर्शादिक विषयोंको जानो या देखो, परन्तु एक कालमें एक ही
को जानो या देखो। वहाँ इस जीवको सर्वको देखने-जाननेकी शक्ति तो द्रव्य-अपेक्षा पाई
जाती है; अन्य कालमें सामर्थ्य हो, परन्तु वर्तमान सामर्थ्यरूप नहीं है, क्योंकि अपने योग्य
विषयोंसे अधिक विषयोंको देख – जान नहीं सकता। तथा अपने योग्य विषयोंको देखने –
जाननेकी पर्याय-अपेक्षा वर्तमान सामर्थ्यरूप शक्ति है, क्योंकि उन्हें देख-जान सकता है; तथा
व्यक्तता एक कालमें एक ही को देखने या जाननेकी पाई जाती है।
यहाँ फि र प्रश्न है कि — ऐसा तो जाना; परन्तु क्षयोपशम तो पाया जाता है और
बाह्य इन्द्रियादिकका अन्यथा निमित्त होने पर देखना – जानना नहीं होता या थोड़ा होता है,
या अन्यथा होता है सो ऐसा होने पर कर्म ही का निमित्त तो नहीं रहा?
समाधानः — जैसे रोकनेवालेने यह कहा कि पाँच ग्रामोंमेंसे एक ग्रामको एक दिनमें जाओ,
परन्तु इन किंकरोंको साथ लेकर जाओ। वहाँ वे किंकर अन्यथा परिणमित हों तो जाना न
हो या थोड़ा जाना हो या अन्यथा जाना हो; उसी प्रकार कर्मका ऐसा ही क्षयोपशम हुआ है
कि इतने विषयोंमें एक विषयको एक कालमें देखो या जानो; परन्तु इतने बाह्य द्रव्योंका निमित्त
होने पर देखो – जानो। वहाँ वे बाह्य द्रव्य अन्यथा परिणमित हों तो देखना – जानना न हो या
थोड़ा हो या अन्यथा हो। ऐसा यह कर्मके क्षयोपशम ही का विशेष है, इसलिये कर्म ही का
निमित्त जानना। जैसे किसीको अंधकारके परमाणु आड़े आने पर देखना नहीं हो; उल्लू, बिल्ली
आदिको उनके आड़े आने पर भी देखना होता है — सो ऐसा यह क्षयोपशम ही का विशेष
है। जैसा-जैसा क्षयोपशम होता है वैसा-वैसा ही देखना – जानना होता है।
इस प्रकार इस जीवके क्षयोपशमज्ञानकी प्रवृत्ति पाई जाती है।
तथा मोक्षमार्गमें अवधि – मनःपर्यय होते हैं वे भी क्षयोपशमज्ञान ही हैं, उनको भी
इसी प्रकार एक कालमें एकको प्रतिभासित करना तथा परद्रव्यका आधीनपना जानना। तथा
जो विशेष है सो विशेष जानना।
इस प्रकार ज्ञानावरण – दर्शनावरणके उदयके निमित्तसे बहुत ज्ञान – दर्शनके अंशोंका तो
अभाव है और उनके क्षयोपशमसे थोड़े अंशोंका सद्भाव पाया जाता है।
मोहनीय कर्मोदयजन्य अवस्था
इस जीवको मोहके उदयसे मिथ्यात्व और कषायभाव होते हैं।