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३८ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
दर्शनमोहरूप जीवकी अवस्था
वहाँ दर्शनमोहके उदयसे तो मिथ्यात्वभाव होता है, उससे यह जीव अन्यथा प्रतीतिरूप
अतत्त्वश्रद्धान करता है। जैसा है वैसा तो नहीं मानता और जैसा नहीं है वैसा मानता
है। अमूर्तिक प्रदेशोंका पुंज, प्रसिद्ध ज्ञानादि गुणोंका धारी अनादिनिधन वस्तु आप है; और
मूर्तिक पुद्गलद्रव्योंका पिण्ड प्रसिद्ध ज्ञानादिकोंसे रहित जिनका नवीन संयोग हुआ ऐसे
शरीरादिक पुद्गल पर हैं; इनके संयोगरूप नानाप्रकारकी मनुष्य, तिर्यंचादिक पर्यायें होती हैं —
उन पर्यायोंमें अहंबुद्धि धारण करता है, स्व-परका भेद नहीं कर सकता, जो पर्याय प्राप्त
करे उस ही को आपरूप मानता है।
तथा उस पर्यायमें ज्ञानादिक हैं वे तो अपने गुण हैं, और रागादिक हैं वे अपनेको
कर्मनिमित्तसे औपाधिकभाव हुए हैं, तथा वर्णादिक हैं वे शरीरादिक पुद्गलके गुण हैं, और
शरीरादिकमें वर्णादिकोंका तथा परमाणुओंका नानाप्रकार पलटना होता है वह पुद्गलकी अवस्था
है; सो इन सब ही को अपना स्वरूप जानता है, स्वभाव – परभावका विवेक नहीं हो सकता।
तथा मनुष्यादिक पर्यायोंमें कुटुम्ब-धनादिकका सम्बन्ध होता है वे प्रत्यक्ष अपनेसे भिन्न
हैं तथा वे अपने आधीन नहीं परिणमित होते तथापि उनमें ममकार करता है कि ये मेरे
हैं। वे किसी प्रकार भी अपने होते नहीं, यह ही अपनी मान्यतासे ही अपने मानता है।
तथा मनुष्यादि पर्यायों में कदाचित् देवादिकका या तत्त्वोंका अन्यथा स्वरूप जो कल्पित किया
उसकी तो प्रतीति करता है, परन्तु यथार्थ स्वरूप जैसा है वैसी प्रतीति नहीं करता।
इस प्रकार दर्शनमोहके उदयसे जीवको अतत्त्वश्रद्धानरूप मिथ्यात्वभाव होता है। जहाँ
तीव्र उदय होता है वहाँ सत्यश्रद्धानसे बहुत विपरीत श्रद्धान होता है। जब मंद उदय होता
है तब सत्यश्रद्धानसे थोड़ा विपरीत श्रद्धान होता है।
चारित्रमोहरूप जीवकी अवस्था
जब चारित्रमोहके उदयसे इस जीवको कषायभाव होता है तब यह देखते – जानते हुए
भी परपदार्थोंमें इष्ट-अनिष्टपना मानकर क्रोधादिक करता है।
वहाँ क्रोधका उदय होने पर पदार्थोंमें अनिष्टपना मानकर उनका बुरा चाहता है।
कोई मन्दिरादि अचेतन पदार्थ बुरे लगें तब तोड़ने-फोड़ने इत्यादि रूपसे उनका बुरा चाहता
है तथा शत्रु आदि सचेतन पदार्थ बुरे लगें तब उन्हें वध-बन्धनादिसे या मारनेसे दुःख उत्पन्न
करके उनका बुरा चाहता है। तथा आप स्वयं अथवा अन्य सचेतन-अचेतन पदार्थ किसी
प्रकार परिणमित हुए, अपनेको वह परिणमन बुरा लगा तब अन्यथा परिणमित कराके उस
परिणमनका बुरा चाहता है।